साधू संगत सोहे न हमका साधू बड़ा स्याना है , पास न उनके जाना है, पास न उनके जाना है

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साधू  संगत  सोहे  न  हम  का साधू बड़ा  स्याना है।

पास  न  उन के  जाना  है,  पास  न उनके  जाना है।

 

लूटत  हैं  संसार  की  माया  झूठ  बचन  उपदेशों  में,

चीर   हरन  करते  नारी  का  राछछ  जईसे  भेंसों  में,

संझा  प्रातः  भेस  बदल  के  संगत  को  भटकाना है।

साधू  संगत  सोहे  न  हम  का  साधू  बड़ा  स्याना  है।

पास  न  उन के  जाना  है,  पास  न उन  के  जाना है।

मदिरा  से  स्नान  करत  हैं रक्त  का  चन्दन  टीका  है,

नाच  नाच  के  गीत  सुनावैं सबद सबद सब फीका है,

 

सरग की कुंजी बेचैं निस दिन जेकरा नरक ठिकाना है,

साधू   संगत   सोहे  न  हम  का  साधू  बड़ा  स्याना है।

पास  न   उन  के  जाना  है,  पास  न उन  के जाना  है।

धरम करम का ढोंग रचत हैं पाप की गढ़ही मा गिर कर,

भोले जन  का  बहकावत हैं  चोर  चपाटन  के बल पर,

दाना देख के गई जो चिरई जाल में फिर फँस जाना है।

साधू   संगत   सोहे  न  हम  का  साधू  बड़ा  स्याना  है।

पास  न  उन  के  जाना  है,  पास  न  उन के  जाना  है।

मेहदी अब्बास रिज़वी

   ” मेहदी हललौरी “