ग़ज़ल : खिलती हुई कलियों की आहों में चमन देखो

खिलती हुई कलियों की आहों में चमन देखो,

आग़ोश  में  काँटों  की  फूलों का बदन देखो।

ग़ैरों  की  हर  इक   बस्ती  पैग़ाम  यही  देती,

अपनी  ही  ज़मीं देखो अपना ही गगन देखो।

 

हस्सास  नज़र  वाले  ख़ुल  कर  ये  बताते हैं,

जो उनका है वह जानें तुम अपना वतन देखो।

हम  को  न  सताओ  अब ख़मोश ही रहने दो,

गर  प्यार  किया है तो अपनी ही जलन देखो।

 

महबूब  की  बातों  से   मबहूत  न हो  जाओ,

किरदार को भी जांचो और चाल चलन देखो।

तकलीफ़  में  आना  है  तकलीफ़  में जाना है,

हर  शामो  सेहर  सूरज  का  सुर्ख़  बदन देखो।

 

शायर  की  शबाहत  में  मज़मून  को  न  ढूंढो,

मफ़हूम  समझने  को  मिसरों  की  चुभन देखो।

झूठे  हैं  सभी  रहबर  जो  आ  के  हैं समझाते,

क्या  रक्खा  नतीजे  में कामों  की लगन देखो।

 

धमकी  भरे  लहजे  में  ‘ मेहदी ‘ को  डराते हैं,

अलफ़ाज़  में  क्या रक्खा अंदाज़े सुख़न देख़ो।

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मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “