कार्तिक मास की पूर्णिमा

आज कार्तिक मास की पूर्णिमा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की खास पूजा और व्रत करने से घर में यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर कृत्तिका नक्षत्र होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान और गंगा स्नान का विशेष महत्व है कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग सुबह सवेरे उठकर गंगा स्नान करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और दीपदान का बड़ा महत्व है। इलाहाबाद, अयोध्या, वाराणसी आदि तीर्थ स्थानों में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

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कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।

सूर्योदय से पहले करें गंगा स्नान

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इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्‍नान करने से व्यक्ति के सभी पाप भी धुल जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सर्योदय होन से पहले स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें। इस दिन व्रत रखे से विशेष फल मिलता है। साथ ही ब्राह्मणों को दान भी देना चाहिए। इस दिन घर में हवन या यज्ञ करवाने से भगवान विष्‍णु की विशेष कृपा मिलती है।

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1. पूर्णिमा की रात चंद्र उदय के बाद चांदी के लोटे से चंद्र को दूध और जल का अर्घ्य अर्पित करें। ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप 108 बार करें।
2. पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। स्नान के बाद पीपल की पूजा करें। पीपल को जल चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं और सात परिक्रमा करें।
3. पूर्णिमा पर चंद्रोदय के बाद चंद्रदेव को कच्चे दूध में मिश्री और चावल मिलाकर अर्घ्य अर्पित करें।
4. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में 11 पीली कौड़ियां, गोमती चक्र रखें। पूजा के बाद ये चीजें तिजोरी में रखें।
5. महालक्ष्मी और विष्णुजी की पूजा करें और पूजा में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। दूध में केसर मिलाएं और इसके बाद इस दूध को शंख में डालकर अभिषेक करें।
6. महालक्ष्मी के मंदिर जाएं और देवी मां को हल्दी की गांठ, इत्र, गुलाब के फूल चढ़ाएं। माता लक्ष्मी के सामने केसर का तिलक खुद के मस्तक पर लगाएं।
7. अपने घर के मंदिर में श्रीयंत्र, कुबेर