किश्वरी कनेक्ट और तलहा सोसाइटी के प्रोग्राम ( ज़ायक़ा और ज़बान ) के शेयरी नशिस्त में पढ़ी गई ग़ज़ल
मकानों को हसीं घर जो बना देती वो औरत है,
अँधेरे को उजाले में बदल दे ऐसी रहमत है।
इन्हीं से ख़ुशबुएं फैली इन्हीं से गुल में रंगत है ,
हर इक औरत हर इक लड़की से बाक़ी आज ग़ैरत है।
रोक़ैया हो, कि राधा हो, वो मैरी हो, या सतवनती,
फ़क़त सीरत की सूरत में ढली धरती की ज़ीनत है।
ये सब्रो शुक्र की आईना है दुनियां की रौनक़ है ,
इन्हीं के दम से हर इक दौर में क़ायम इबादत है।
कभी एहसास के दामन को फैला कर ज़रा देखो,
न मजबूरी न ज़हमत है फ़क़त राहत की निकहत है।
बक़ा – ए नस्ले इंसानी का सरचश्मा यही तो हैं ,
यह मर कर ज़िन्दगी लातीं ख़ुदा की ऐसी क़ुदरत है।
निज़ामे मुल्क कुछ ऐसा है जिस में हम भी शामिल हैं,
ये शामिल मिलकियत होती नहीं क्योंकि ये औरत है।
मोहब्बत में घुले दो बोल से ही शाद हो जाती,
इन्हें एहसास बस होता रहे इन की भी इज़्ज़त है।