ग़ज़ल : चारों तरफ़ से आग की आंधी उठी हुई , वीराने ख़ाक हो चुके बस्ती जली हुई
Jan 08, 2019Comments Off on ग़ज़ल : चारों तरफ़ से आग की आंधी उठी हुई , वीराने ख़ाक हो चुके बस्ती जली हुई
चारों तरफ़ से आग की आंधी उठी हुई,
अपनी हथेलियों पे लिए अपने सर को आज,
अरमान के दिन रात सजाए थे ख़्वाब जो,
बेग़ैरती के दौर की हालत न पूँछिये,
आये थे मयकदे में सुकूं की तलाश में,
दरिया के पार कैसे कोई जाये गा भला,
तदबीरे आशनाई भी बेसूद हो गई,
मुद्दत के बाद हाथ में आईना आ गया,
‘ मेहदी ‘ तुमहारी बातें भला क्यों कोई सुने,
मेहदी अब्बास रिज़वी
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