तुलसीदास ने लिखा है ’मुनि तापस जिन्ह तें दुःखु लहहीं, ते नरेश बिनु पावक दहहीं,’ यानी जहां साधू दुखी होते हैं वहां का राजा बिना आग के ही जलता है। हरिद्वार के मातृ सदन आश्रम में 24 अक्टूबर, 2019 से अनशन पर बैठे ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद आज अपने अनशन के 191वें दिन पानी छोड़ने का निर्णय ले लिए हैं। ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद की मांग है कि गंगा को अविरल व निर्मल बहने दिया जाए यानी गंगा पर कोई बांध न बनाए जाएं, शहरों का गंदा पानी व औद्योगिक कचरा नालियों के माध्यम से गंगा में न डाला जाए व गंगा में होने वाले अवैध खनन को रोका जाए। इन्हीं मांगों को लेकर पहले मातृ सदन के स्वामी निगमानंद 2011 में तथा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद 2018 में अनशन करके अपने प्राण त्याग चुके हैं।
1998 में स्वामी निगमानंद के साथ अवैध खनन के खिलाफ मातृ सदन की ओर से आयोजित पहले अनशन में बैठे स्वामी गोकुलानंद की 2003 में खनन माफिया ने हत्या करवा दी। 2014 में वाराणसी में अनशन करते हुए बाबा नागनाथ ने भी अपने प्राण त्याग दिए। पिछले वर्ष 24 जून से बद्रीनाथ में गंगा के लिए अनशन पर बैठे संत गोपाल दास जो 6 दिसम्बर से गायब थे हाल ही में मिले हैं। उनका आरोप है कि सत्ताधारियों ने उनका अपह्रण कर लिया था। सवाल उठता है कि भाजपा के राज में साधुओं की ऐसी दशा क्यों हो रही है?
सरकार साधुओं की बात इसलिए नहीं सुन रही क्यों कि वह गंगा पर बांध बना कर, सीवेज ट्रीटमेण्ट संयंत्र बनवा कर, चार धाम परियोजना से, नदी में जहाज चला कर, अवैध खनन को संरक्षण देकर पैसा कमाना चाह रही हैं जिसकी राजनेता, नौकरशाह, ठेकेदार व निजी कम्पनियां मिलकर बंदरबांट करती हैं।