कविता :- एक नाव पर सवार तो नहीं : मगर एक ही तूफां से जूझ रहे हैं हम सभी !
May 09, 2022Comments Off on कविता :- एक नाव पर सवार तो नहीं : मगर एक ही तूफां से जूझ रहे हैं हम सभी !
रिपोर्ट बृजेश अग्रहरि
मयस्सर है क्या? क्या तुम्हें बताएं हम धूप थी या के छांव शिनाख्त हो ना सकी
आए थे तो कुछ उजरे से थे
लम्हों की याद क्या करें गरज चुके . बरस गए . लरज के बारिशें कहीं
आज मुद्दतें हुईं मुस्कुराहटें गई कब से किस्सागोई के थमे पड़े थे
ये मंदिरों की घंटियां जो बज पड़ीं तो कह गयीं तुम्हीं में सका अक्स है, रचाव है, बसाव है
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