Home अद्धयात्म अपने जीवन में लाएं आध्यात्मिक चेतना : क्योंकि वह स्वयं एक ही सुख है – परम आनंद
अपने जीवन में लाएं आध्यात्मिक चेतना : क्योंकि वह स्वयं एक ही सुख है – परम आनंद
Jun 26, 2022
डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
हर व्यक्ति की ऐसा जीवन जीना चाहिए जो शरीर व जीवन में भारी न पड़े .जीवन को थोड़ा आध्यात्मिक मार्ग पर भी चलाना चाहिए .जिससे जीवन में चल रहे समय को भी कोई कष्ट न हो अपने मन की सहायता से परम पुरुष तक पहुंचने में आप असमर्थ हैं. आपके मन को बार-बार निराश होकर वापस आना पड़ेगा. अगर वह उन तक पहुंचने की कोशिश करता है. क्योंकि वह आपकी कल्पना शक्ति की पहुंच से बाहर है. आप किसी भी सामान्य ज्ञान के माध्यम से उस तक नहीं पहुंच सकते. ब्रह्म की प्राप्ति मन से नहीं हो सकती और न ही वाणी से संभव है. ब्रह्म आनंद में स्थापना के साथ मन, बुद्धि, शब्द – सब खो जाते हैं, क्योंकि वह स्वयं एक ही सुख है- परम आनंद. अपनी चेतना की प्रफुल्लित शक्ति के माध्यम से व्यक्ति को उसमें स्थापित होना होता है. उनके पास पहुंचने के बाद, मन के न होने के कारण, छह शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान और ईर्ष्या) भी नहीं रह सकते। साधक तब सभी भयों से मुक्त हो जाता है.
सर्वोच्च चेतना अदृश्य है. कोई अपने अंगों के माध्यम से अत्यंत विशाल और अत्यंत सूक्ष्म चीज को नहीं समझ सकता है. उन्हें देखने या समझने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों की मदद लेनी पड़ती है. इसी तरह सर्वोच्च चेतना दिखाई नहीं देती (हालांकि, वह अदृश्य नहीं है) अर्थात उसे देखने के लिए कष्ट उठाना पड़ता है. जैसे अणुओं और परमाणुओं को देखने के लिए बौद्धिक और वैज्ञानिक दृष्टि आवश्यक है. वैसे ही परम ब्रह्म को देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि आवश्यक है. वह आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त होता है. इसलिए उन्हें प्राप्त करने के लिए आपको उपवास करना होगा. जिसका अर्थ है पूजा.
जिसे आप अपनी बाहरी दृष्टि से एक साधारण व्यक्ति के रूप में देखते हैं. वह वास्तव में एक सचेत इकाई है. यदि आप उसे अपनी आंतरिक दृष्टि से देखते हैं। जिसे आप अपनी सतही दृष्टि से एक निर्जीव वस्तु के रूप में देखते हैं. वास्तव में वह कोई निर्जीव वस्तु नहीं है. बल्कि एक संवेदनशील इकाई है.महान व्यक्ति को अपने सम्मुख लेन के लिए उसे देखने के लिए व्यक्ति को गहराई तक जाना पड़ता है। वह गहरा है – बहुत गहरा है और इस आंतरिकता के कारण ही वह सभी संस्थाओं में अपरिवर्तनीय रूप में रहता है. वास्तव में. आध्यात्मिक साधना का पहला और अंतिम शब्द एक ही रूप में अनेकों के संश्लेषण यानी सबको को एक रूप में देखना है. सबको अनेक रूप में देखना है. यह पुरुष सत्ता सभी वस्तुओं में अंतर्निहित और स्थायी है और इसलिए उसे देखने के लिए सूक्ष्म के सूक्ष्मतम और गहरे क्षेत्र की सबसे अधिक गहराई में खुद को स्थापित करना होगा. परमपुरुष सर्वोच्च ज्ञाता हैं. सर्वोच्च सत्ता हैं. वह सबके जानने के योग्य हैं. उन्हें जानने के लिए आपको अपने विचार को सूक्ष्म और सूक्ष्म बनाते हुए सीधे और सरल तरीके से आंतरिक क्षेत्र में जाना होगा.
जब व्यक्ति को अंतर्ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो उसके सभी कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं। तुम जानते हो क्यों? मन सुख और दुख का बोधक है, लेकिन ब्रह्म अतिमानसिक अवस्था से भी ऊपर है। उसे पाने के लिए आपको अपने मन की सीमा को पार करना होगा और इसके साथ ही आपको अपने विकृत मन के सभी सुखद और दुखदायी कबाड़ को पीछे छोड़ना होगा.
मन की एक विशेष अभिव्यक्ति है. आप अपने सांसारिक ज्ञान के माध्यम से या अपनी डिग्री और डिप्लोमा की मुहर के द्वारा उसे प्राप्त नहीं कर सकते. क्योंकि सभी सांसारिक ज्ञान, समय, स्थान और व्यक्ति के अधीन है.उस ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए, जो आध्यात्मिकता का सर्वोच्च लक्ष्य है, व्यक्ति को आध्यात्मिक बलिदान (साधना) का सहारा लेना पड़ता है। दूसरों की आंखों से नहीं- दूसरों के चश्मे से नहीं, आप उसे अपने भीतर अपनी आंखों से देखेंगे.