Home अद्धयात्म जानिए क्यों है वट सावित्री के व्रत में वट वृक्ष की पूजा का इतना महत्व
जानिए क्यों है वट सावित्री के व्रत में वट वृक्ष की पूजा का इतना महत्व
May 15, 2018
वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष जिसका अर्थ है बरगद का पेड़, का खास महत्व होता है। इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को सावित्री देवी का रूप माना जाता है। वहीं पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास भी माना जाता है। इसलिए कहते हें कि इस पेड़ की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी का, तने में भगवान विष्णु का तथा डालियों एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास कहा जाता है। इसके साथ ही अक्षय वट वृक्ष के पत्ते पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिए थे यह अक्षय वट वृक्ष प्रयाग में गंगा तट पर वेणीमाधव के निकट स्थित है।
पूजा में लगने वाली सामग्री और पूजा करने का तरीका
अमावस्या के दिन बांस की टोकरी लें उसमें से सप्त धान, गेहूं, चावल, तेल, कांगनी और श्यामक आदि भर लें और उनमें से एक पर ब्रह्मा और सावित्री कथा दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें यदि इनकी प्रतिमाएं आपके पास नहीं है तो मिट्टी की प्रतिमा बनाई जा सकती है। अब वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पहले ब्रह्मा सावित्री और फिर सत्यवान सावित्री का पूजन करें सावित्री के पूजन में सौभाग्य की वस्तुएं काजल, मेहंदी, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र, आभूषण और दर्पण इत्यादि चढ़ाएं, तथा वटवृक्ष का पूजन करें। पूजन करने के बाद वट की जड़ों में जल चढ़ायें। अब वृक्ष के तने पर 50 फुट के करीब कच्चा सूत 108 बार लपेटने का विधान है। यदि इतना ना कर सकें तो न्यूनतम 7 बार तो परिक्रमा करनी ही चाहिए। अंत में वट सावित्री व्रत की कथा सुननी चाहिए।
सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। वट वृक्ष का पत्ता बालों में लगाएं। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार मीठा भोजना करना चाहिए। इस पूजन में स्त्रियाँ चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियाँ अपने आँचल में रखकर बारह पूरी व बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं। वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं। कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं। हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं। और सूत तने पर लपेटती जाती हैं। परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। इस तरह व्रत समाप्त करती हैं। इसके पीछे यह कथा है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को प्राण दिए, उस समय सत्यवान को पानी पिलाकर सावित्री ने स्वयं वट वृक्ष की बौंडी खाकर पानी पिया था। वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।
वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- ‘वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
इस व्रत की कथा हमें स्त्री की शक्ति और प्रकृति के करीब रहना सिखाती है। बट सावित्री व्रत में बरगद का पूजन उनके संरक्षण का संदेश देता है। पर्यावरण विद भी बताते हैं कि वट वायुमंडल के लिए अत्यंत ही उपयोगी है। यह वृक्ष जिस स्थान पर लगा होता है उसके आसपास प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। बरगद की औसतन आयु 150 वर्ष से अधिक है। इसकी जड़ से लेकर पत्ती और फल तक से 25 तरह की औषधि बन सकतती हैं। साथ ही उसका फल पंछियों के लिए सर्वोत्म भोज्य पदार्थ है। बरगद में ग्रहों का वास माना जाता है और बरगद का पूजन कर लिया जाए तो कुछ उपायों से जन्म पत्रिका में ग्रहदोष कम हो जाते हैं। मंगलवार को वट वृक्ष का पूजन करने से दीर्घायु हासिल होती है और वट वृक्ष पर सफेद वस्त्र, सफेद धागा लपेटने से नाड़ी दोष से मुक्ति मिलती है। गुरुवार को 108 परिक्रमा करने से मांगलिक दोष में कमी आती है और वटवृक्ष को लगाने से कुल के पितृदोष में कमी होती है। बट वृक्ष के पत्तों का बंदनवार लगाने से गृह क्लेश में कमी आती है और वट वृक्ष के फलों के खाने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।