सनातन धर्म में भोजन को लेकर क्या कहते हैं !

रीडर टाइम्स न्यूज़ डेस्क


भोजन इंसान के जीवन का एक अहम हिस्सा हैं। भारतीय सस्कृति में तो ये भी कहा गया हैं कि जैसे अन्न ,वैसा मन भोजन न केवल शरीर के पोषण कि जरुरत को पूरा करता हैं बल्कि यह मन -मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव छोड़ता हैं। व्यक्ति की आधे से ज़्यादा बीमारियों का संबंध पेट से होता हैं ऐसे में अगर भोजन करते समय सनातन धर्म में बताएं गए कुछ नियमो का ध्यान रखे तो कई शारीरिक समस्याओ से बच सकता हैं

शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता हैं कि भोजन से पहले खाने कि थाली चारो तरफ जल छिडकाना चाहिए। असल में जब हम खाने कि थाली के आस -पास जल छिड़कते हैं तो उसके साथ ही मंत्रोच्चार भी करते जिसके कारण छिड़का जाने वाला वह जल पवित्र और दिव्य हो जाता हैं।

बिना नहाए न खाए –
सनातन धर्म में बिना स्नान किए भोजन ग्रहण करने कि मनाही हैं इसका कारण की बताया गया हैं स्नान से पहले शरीर पर रज – तम -प्रधान अशुद्धि की उपस्थिति के कारण भोजन करने से शरीर में रज -तम -प्रधान तरंगो का स्थानांतरण होता हैं स्नान करने से शरीर को पवित्रता मिलती हैं।

इस तरह न करे भोजन –
अक्सर बड़े -बुजुर्गो को कहते सूना होगा कि रवाना खाते भोजन को चबा -चबाकर खाना चाहिए। इससे ऑटो पर खाने को पचने का अधिक दवाब नहीं पड़ता और भोजन आसानी से पच जाता हैं।

रात में भरपेट भोजन कभी न करे –
शास्त्रों में भी इस बात का वर्णन मिलता हैं कि रात के समय भरपेट भोजन या भरी भोजन नहीं करना चाहिए क्योकि रात में अधिक खाना -खाने से शरीर को उसे पचने में अधिक समय लगता हैं और शरीर में कई तरह की समस्याएं उत्पान हो जाती हैं।