Home Breaking News 2019 में सारी पार्टिया एक हो कर भी नहीं रोक पाएंगी, मोदी के विजय रथ को, पढ़े कैसे
2019 में सारी पार्टिया एक हो कर भी नहीं रोक पाएंगी, मोदी के विजय रथ को, पढ़े कैसे
May 24, 2018
क्या 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों का महागठबंधन मोदी के विजय रथ को रोकने में कामयाब होगा? कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान विपक्षी दलों की एकजुटता के बाद ये सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है। जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार के शपथग्रहण समारोह में 11 विपक्षी दलों के नेताओं ने एकजुटता दिखाकर एक तरह से 2019 के लिए बीजेपी के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है| एचडी कुमारस्वामी ने जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो इस दौरान मंच पर एक पूर्व पीएम, पांच मुख्यमंत्री, पांच पूर्व मुख्यमंत्री और चार सांसद मौजूद थे| पीएम मोदी के विजय रथ को रोकने की ख्वाहिश इस कदर इस जुटान में दिखी कि 1996 के बाद इस तरह एक सार्वजनिक मंच पर विपक्ष का यह सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन था|
इसकी बानगी इस रूप में समझी जा सकती है कि हाल तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे मायावती और अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और माकपा नेता सीताराम येचुरी सब इस मंच पर मौजूद रहे. अब यहीं से बड़ा सवाल खड़ा होता है कि ये सब दल अगर वाकई एक साथ आ जाएं तो क्या 2019 में बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी को हराने की सामर्थ्य रखते हैं?
कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद 21वें राज्य के रूप में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए कदम बढ़ाया, तो कांग्रेस-जेडीएस ने आपस में हाथ मिला लिया| इतना ही नहीं विपक्ष के बाकी दल उनके सहयोग के लिए साथ खड़े हो गए| इसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी सदन में बहुमत साबित करने में नाकाम रही, जिसके चलते बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा| इससे विपक्ष को 2019 के लिए जैसे संजीवनी मिल गई|
2019 चुनाव से पूर्व एक विश्लेषण किया गया है, जिसमें प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में जितनी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है, उनकी संख्या निकाली गई है। फिर उनमें विपक्षी दलों की एकजुटता होने पर कुल वोटों की संख्या क्या थी, यहा जोड़ा गया। ताकि यह देखा जा सके कि भाजपा के लिए अब परिणाम कितना बदल गया होगा।
इस विश्लेषण के मुताबिक, 2019 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। 2014 में भाजपा ने यूपी की 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 में विपक्षी दलों की एकता के चलते यह संख्या घटकर 46 रह जाएगी। उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह अंतर केवल 12 सीटों का रह जाएगा। 2014 चुनावों में जेडीयू और भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। लेकिन तब अगर ये साथ लड़ें तो भाजपा को 2 अतिरिक्त सीटों का लाभ मिल सकता था। वहीं, यूपी के अलावा सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में यह आंकड़ा सिर्फ 10 ही रहेगा।
2014 के अंकगणित को समझा जाए तो 2019 का परिणाम भी भाजपा के पक्ष में रहने वाला है। तमाम नफा-नुकसान के बावजूद भाजपा अब भी अकेले दम पर 226 का आंकड़ा पार कर सकती है, जिसका मतलब यह हुआ कि 2019 चुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में भी वह सक्षम होगी। अगर केवल आंकड़ों और गणितीय समीकरणों के आधार पर चुनाव जीते जा सकते होते, तो गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में भाजपा के हारने की कोई वजह नहीं थी। अगर आंकड़ों से ही चुनाव जीते जाते तो साल 2014 के बाद हुए चार उपचुनावों रतलाम, गुरदासपुर, अजमेर और अलवर की सीट भी भाजपा के खाते से कम नहीं हो जाती।
पार्टियों के गठबंधन के लिए यह भी जरूरी है कि गठबंधन आखिर दर्शाता क्या है, यानि उसका लक्ष्य क्या है। अपने दुश्मन (मोदी सरकार) को हराने के लिए केवल गठबंधन कर लेना काफी नहीं है। इसके साथ ही सकारात्मक एजेंडे पर काम करना भी जरूरी है, जो विश्वासयोग हो। जिससे मतदाता प्रभावित हो सकें। इन सबसे बड़ी भूमिका उस वक्त की परिस्थितियों और जनता के मनोभाव की होती है, जो किसी भी गठबंधन को जिताने या हराने में अहम भूमिका अदा करती है। इस वजह से गणितीय समीकरणों के साथ-साथ पार्टियों के बीच की केमेस्ट्री भी गठबंधन के लिए बेहद जरूरी है।