इंदिरा गांधी ने क्यों की 1975 आपातकाल की घोषणा, जेटली ने इंदिरा की तुलना हिटलर से की

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आज ही के दिन 1975 में भारत ने इतिहास का सबसे काला दौर देखा था। उस वक्त देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का राज था। असल में इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की थी। ये बात तो सभी जानते हैं लेकिन उन्हें इस फैसले के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियों के बारे में कम ही लोगों को पता है। हम आपको बता रहे हैं उस एक फैसले के पीछे का पूरा सच जिसने बेहद सख्त कही जाने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री को देश पर इमरजेंसी लागू करने के लिए मजबूर कर दिया |

 

इंदिरा को भारतीय राजनीतिक इतिहास की सबसे सख्त प्रशासकों में से एक माना जाता है। लेकिन किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि एक महिला प्रधानमंत्री रातों-रात ऐसा ऐलान कर देंगी जिसे आजादी के बाद देश के इतिहास में काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा।

 

बता दें कि इंदिरा गांधी ने 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण को 11 लाख वोटों से हराया था। उनकी इस जीत के खिलाफ राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया था | कि इंदिरा गांधी ने कई भ्रष्ट तरीकों और कानून तोड़कर चुनाव में जीत हासिल की थी।

 

इंदिरा को भारतीय राजनीतिक इतिहास की सबसे सख्त प्रशासकों में से एक माना जाता है। लेकिन किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि एक महिला प्रधानमंत्री रातों-रात ऐसा ऐलान कर देंगी जिसे आजादी के बाद देश के इतिहास में काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा। बीजेपी जहां इस दिन को ‘ब्लैक डे’ के रूप में मना रही है, वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इंदिरा गांधी की तुलना हिटलर से की है |

 

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर के मुताबिक, इमरजेंसी के बाद जब उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई तो उन्होंने इस पर उनसे बात की. तभी संजय गांधी ने उन्हें बताया था | कि वह देश में कम से कम 35 साल तक आपातकाल को लागू रखना चाहते थे, लेकिन मां ने चुनाव करवा दिए |

 

12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगाया। हाईकोर्ट ने राज नारायण की याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया। इंदिरा पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशनरी का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप लगे थे। राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था।

 

इस मामले की सुनवाई के बाद जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। इसके साथ ही अगले 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। जज ने अपने फैसले में ये भी कहा कि इंदिरा गांधी संसद के सदन में तो बैठ सकती हैं लेकिन मतदान नहीं कर सकतीं।

 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 20 दिन दिए गए। इंदिरा ने भले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन उन्हें पता था कि जिस जन-प्रतिनिधित्व कानून को तोड़ने का उनपर आरोप है उसमें संशोधन किए बिना उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलेगी।

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कहा जाता है कि इसी डर के चलते केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने जन-प्रनितिधित्व कानून में संशोधन करने का फैसला किया। साथ ही नए कानून को पिछे कह तारीख से लागू किया गया। कानून में संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला इंदिरा गांधी के पक्ष में गया।

 

इस पूरी प्रक्रिया के बीच जैसे ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया पूरे देश में हलचल मच गई। इन दिनों जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में देशव्यापी आंदोलन चल रहा था। 12 जून को ही गुजरात विधानसभा में कांग्रेस की हार की खबर ने पार्टी को बुरी तरह झकझोर दिया और विपक्ष ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग शुरु कर दी।

 

इस मांग के समर्थन में देश भर में धरना, प्रदर्शन और सभाएं होने लगीं। देश में तत्कालीन सरकार के खिलाफ बढ़ते रोष के बीच अचानक 25 जून 1975 की रात देश आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। आपातकाल का ये दौरा 19 महीने तक चला जिससे निराश हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बाबू जगजीवन राम ने पार्टी छोड़ दी।

 

आपातकाल की समाप्ति के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए। 1977 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी और कांग्रेस पार्टी को अपने गलत फैसले की सजा मिली और वह केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई।

 

चुनाव के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। अपनी सांसदी बचाने के लिए इंदिरा गांधी का आपातकाल लगाने का वो फैसला अब देश का सबसे काला दौर माना जाता है। 1975 की इमरजेंसी को पूरे 42 वर्ष हो गए हैं। इसके साथ ही यह एक ऐसा इतिहास बन गया है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता।

 

जेटली ने सोमवार को लिखे एक फेसबुक पोस्ट में इंदिरा की तुलना हिटलर से करते हुए लिखा है कि दोनों ने ही संविधान की धज्जियां उड़ाईं। उन्होंने आम लोगों के लिए बने संविधान को तानाशाही के संविधान में तब्दील कर दिया। उन्होंने आगे लिखा है कि हिटलर ने संसद के ज्यादातर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था और अपनी अल्पमत की सरकार को उसने संसद में दो तिहाई बहुमत के रूप में साबित कर दिया।

 

जेटली ने लिखा इंदिरा ने भी संसद के ज्यादातर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था | और उनकी अनुपस्थिति में दो तिहाई बहुमत साबित कर संविधान में कई सारे संशोधन करवा लिए। 42वां संशोधन के जरिए हाई कोर्ट का रिट पिटीशन जारी करने के अधिकार को कम कर दिया गया। डॉ भीमराव आंबेडकर के संविधान की यह आत्मा थी। इसके अलावा इंदिरा ने आर्टिकल 368 में भी बदलाव किया था, ताकि संविधान में किए गए बदलाव जूडिशल रिव्यू में नहीं आ पाए।

 

जेटली ने अपने पोस्ट में इंदिरा पर कई तंज कसे हैं। जेटली ने लिखा है कि इंदिरा ने तो कुछ ऐसी भी चीजें कर डालीं जो हिटलर ने भी नहीं किया था। इंदिरा ने संसदीय कार्यवाही की मीडिया में प्रकाशन पर भी रोक लगा दी। इंदिरा ने संविधान और लोकप्रतिनिधित्व ऐक्ट तक में बदलाव कर डाला। संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री के चुनाव को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। लोक प्रतिनिधित्व कानून को रेट्रस्पेक्टिव (पूर्वप्रभावी) तरीके से संशोधित कर दिया गया ताकि इंदिरा के गैरकानूनी चुनाव को इस कानून के तहत सही ठहराया जा सके। हिटलर से कई कदम आगे जाकर इंदिरा ने भारत को ‘वंशवादी लोकतंत्र’ में बदल दिया।

 

जेटली ने आपातकाल के बारे में ‘इमरजेंसी रिविजिटेड’ शीर्षक से तीन भागों वाली श्रृंखला का पहला हिस्सा रविवार को फेसबुक पर लिखा था। श्रृंखला का दूसरे भाग में जेटली ने आज पुरानी यादों के जरिए इंदिरा और कांग्रेस पर हमला बोला। रविवार के ब्लॉग में जेटली ने आपातकाल कैसे लगा इसपर लिखा था। बता दें कि 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा था। बीजेपी जहां इस दिन को ‘ब्लैक डे’ के रूप में मना रही है |