नहीं कोई ऐसी मिसाल है, जो हर एक बाग़ संवार दे ,
न हवा में दम न फ़ज़ा में दम, जो खिंज़ा को फ़सले बहार दे।
कोई दूसरा नहीं नाख़ुदा, है ख़ुदा की सारी ये रहमतें,
जो भंवर में आई हों कश्तियाँ, वो लहर पे फिर से उभार दे।
न ही चांदी सोने में है चमक, न ही राज पाट में है धमक,
वो ख़ुदी बजुज़ है समझना अब, जो ख़ुदी हमें भी वक़ार दे।
न ही चाहतों से हुआ है कुछ, न ही ख़्वाब से ही मिला है कुछ,
ये सिफ़त है ज़रफ़े कमाल की, जो हवा के रुख को निखार दे।
कहीं जुस्तजू कहीं गुफ़्तगू , कहीं महफ़िलें हैं सजी धजी,
नहीं कोई बाक़ी है मयकदा, जो ज़ेहन को थोड़ा ख़ुमार दे।
चली अब चमन में है वह हवा, जो सताती फूलों को बरमला,
अए ख़ुदा दिलों की है यह दुआ, तू गुलों को अपना हिसार दे।