एक अनुभूति

2 gajal

आ जाओ हे मुरली वाले दिन कटता न रैन,

कहाँ से पाये हिया अब चैन।

रक्त  ढले  हैं  आंसू  बन बन पथराय है नैन,

कहाँ से पाये हिया अब चैन।।

 

बाट  जोहते  तेरी  मोहन  प्रीत भरी  आशा कुचली,

जमुना जल तड़पे ऐसे जैसे तड़पे जल बिन मछली,

बरसाने  में  राधा जोगन बन  करती  है बैन।

कहाँ से पाये हिया अब चैन।।

 

विरह  वेदना बन अग्नी  हृदय  सब का  झुलसाती है,

पनघट पर पनिहारिन अपना ही शव ले कर जाती है,

सूखी चुनरी भीगन तरसे माखन दधि बेचैन।

कहाँ से पाये हिया अब चैन।।

 

आओ हे घनश्याम बिरज में हाथ जोड़ विनती करती,

गोकुल मधुबन जिया न सोहै  विरह में जीती हूँ मरती,

मटकी फोड़ो जी भर छेड़ो करूं गी मैं न बैन।

कहाँ से पाये हिया अब चैन।।

 

 आओ देदो धूल चरण की माथे तिलक लगाऊँ गी,

तेरी नट  खट लीला  को  माता  से नहीं बताऊँ गी,

जीवन का अनमोल रतन हो गी प्रभु तेरी देन।

कहाँ से पाये हिया अब चैन।।

 

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “