गीत …..

मन की बात, जन की बात

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हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा पार करो।

प्यार का अमृत  बरसा  दो इस  धरती पर उपकार करो।

 

द्वारिका नगरी में क्या ऐसा जो हम सब को भूल गए,

रस्ता   तकते  तकते  केशव  नयन  हमारे   फूल  गए,

पल छिन को ही आ जाओ आ कर सब का  उद्धार करो।

हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा  पार करो।

 

मधुबन में गइया जाती पर घास नहीं अब चरती है,

मुरली धुन सुनने को  तरसे भूखी  प्यासी  मरती है,

जैसा  छोड़   गए  थे  माधव   फिर  वैसा   संसार  करो।

हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा पार करो।

 

तुम थे तो  बालाएं कितनी निर्भय हो कर जीती थीं,

मटकी गगरी फोड़वा कर भी हंसती गाती रहती थीं,

नरक  बना  गया  नारी  जीवन  जीने  का  उपचार करो।

हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा पार करो।

 

त्राहि मान का नाद सुनाते पवन के झोंके आते हैं,

सावन के बादल भी  धरती  पर अग्नी बरसाते हैं,

जल्दी  आओ  कृष्ण  मुरारी  धरती   का   श्रृंगार   करो।

हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा पार करो।

 

प्रीम की महिमा क्या होती  है हम  ने तुम से जाना है,

अपनी सुख सविधा का करता एक तुम्हीं को माना है,

प्रेम   की  सरिता  ठहर  गई  है  बहने  को  तैयार  करो।

हे  गिरधारी  हम  दुखियों  का  आ  कर  बेड़ा पार करो।

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “