लैला – मजनूं की कहानी तो सभी जानते है इन पर फिल्मे भी बन चुकी है। लैला मजनूं को प्यार का प्रतीक माना जाता है जिन्होंने प्यार की खातिर जान दे दी। दोनों की कब्र श्रीगंगानगर में हैं। हर साल 15 जून को लैला-मजनूं की याद में अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर, राजस्थान) के बिंजौर में सालाना मेला लगता है। पूरे देश के हजारों प्रेमी जोड़े यहां आकर चादर चढ़ाते हैं और मन्नते मांगते हैं। ज्यादातर लोगों का मत है कि उस समय पाकिस्तान में जन्मे लैला-मजनूं अंतिम समय में अनूपगढ़ के बिंजौर गांव ही आए थे। लैला के भाई दोनों को मारने के लिए उनके पीछे पड़े हुए थे। दोनों छिपते-छिपाते पानी की तलाश में यहां पहुंचे और दोनों की प्यास से ही मौत हो गई और यहीं दोनों को एक साथ दफना दिया गया। दोनों की इस प्रेम कहानी व कब्रों का राज यहां आजादी के बाद खुला फिर 1960 के बाद से यहां मेला लगने लगा, जो आज तक जारी है।
मदरसे में पढ़ाई के दौरान ही मुलाव्वाह को लैला नाम की एक लड़की से इश्क हो गया और लैला भी उसे चाहने लगी। मुलाव्वाह कविताओं में रुचि रखता था। ऐसे में अब वो जो भी कविता लिखता, सबमें लैला का जिक्र जरूर होता। मजनूं ने लैला के परिवार वालों से उसका हाथ मांगा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। लैला के परिवार ने उसकी शादी एक अमीर व्यापारी से करवा दी। लैला भी इस शादी से खुश नहीं थी और उसने अपने पति को मजनूं के बारे में सब बता दिया। खफा होकर पति कैफी ने उसे तलाक दे दिया और उसके पिता के घर छोड़ दिया। जब मजनूं ने लैला को फिर देखा तो दोनों घर से भाग गए।
लैला-मजनूं घर से भागे तो परिवार जान के प्यासा हो गया लैला के मजनूं के साथ भागने का पता उसके परिवार को लगा तो उसके भाई गुस्सा हो गए और दोनों को ढूंढने लगे। वहीं, परिवार से डरते-डरते लैला-मजनूं दर-दर भटकने लगे। बताया जाता है कि भागते-भागते वे श्रीगंगानगर की अनूपगढ़ तहसील के गांव बिंजौर ( 6 एमएसआर ) में पहुंच गए। यहीं रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी न मिलने से दोनों की मौत हो गई और लोगों ने उन्हें एक साथ दफना दिया। बीएसएफ भी देती है दोनों को सम्मान, सीमा चौकी का नाम पर भी मजनूं पर देश में बीएसएफ की संभवत: यहां पहली सीमा चौकी है, जो प्यार करने वालों के नाम पर बनी है। सीमा पर बसे इस गांव में बीएसएफ की सीमा चौकी का नाम पहले लैला-मजनू था, जिसका नाम बाद में मजनूं कर दिया गया।