दिल शिकस्ता शौक़ से आराम से रुक जाए गा,
रेशमी ज़ुल्फ़ों का साया जिस जगह मिल जाये गा।
नामाबर आता नहीं पर दिल मेरा कहता सदा,
इक परिंदा आये गा पैग़ाम उन का लाये गा।
अए मेरे महबूब आओ तेरे इस्तेक़बाल में,
यह ज़मीं उठ जाये गी यह आसमां झुक जाये गा।
कोई भी आता नहीं है मेरी ग़ुरबत देख कर,
सोंचता हो गा यहां पर आ के क्या वह पाए गा।
ख़स्ता तन है क़ब्र में और बस कफ़न रहबर मेरा,
सोंचना क्या मेरा रहबर किस तरफ़ ले जाये गा।
आईने से दूर रह कर देखता रहता हूँ मैं,
मुझ को देखे गा अगर तो ख़ुद से ही शरमाये गा।
इश्क़ के चलते चाराग़-ए सहर बन कर रह गया,
हंसती है बादे सबा कुछ दम में बुझ जाये गा।
क़ब्र के तख़्ते लचक कर टूट न जाएं कहीं,
आंसुओं के फूल वह जब क़ब्र पर बरसाए गा।