पटना :- आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों तक का समय पितृपक्ष का होता है। मान्यता के अनुसार पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। मनुष्य पर देव ऋण, गुरु ऋण अौर पितृ ऋण होते हैं। माता-पिता की सेवा करके मरणोपरांत पितृपक्ष में पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध करने पर पितृऋण से मुक्ति मिलती है।
ऐसे तो देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।
मोक्ष की भूमि गया जलरूप में विराजमान हैं विष्णु :
गया को विष्णु की नगरी माना जाता है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। गरुड़ पुराण के अनुसार गया जाने के लिए घर से निकले एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग की अोर ले जाने के लिए सीढ़ी बनाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार गया में पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं।
पितरों के प्रति जताएं आभार :
माना जाता है कि मरने के बाद भी आत्माएं अपने से जुड़े वातावरण में चिरकाल तक विद्यमान रहती है और विभिन्न प्रकार की प्रेरणाओं के रूप में अपना परिचय देती है। इन सूक्ष्म पितर आत्माओं के प्रति श्रद्धा, सद्भाव व्यक्त करना, दिवंगत आत्मा के मार्ग में मोह ममता ही बाधा, कष्ट रूप में खड़ी दिखती हैं। इससे उन्हें छुटकारा दिलाना, सहायता करना ही श्राद्ध कर्म का उद्देश्य है। शास्त्रीय मत है कि ‘स्वर्गीयत्मवान …..’ तेषाम् गुणान् स्मरेत। तेषाक वैशिष्ट्य प्रशंसयेत। भविसन्त तयः पूर्वजानां उपकारान् अविस्मरणाय प्रेरणाम् कुर्युः। अर्थात् स्वर्गीय आत्मा की शांति के लिए शुभ कार्य करने चाहिए। साधन, तप, वेदपाठ, अनुष्ठान करने चाहिए। इससे स्वर्गीय आत्मा को मोह, क्षोभ तथा वासनाजन्य अशांति मिलती है।
क्यों करें पिण्डदान :
भारत में आश्विन माह को कृष्णपक्ष कहा जाता है। यही पितृ पक्ष भी है। दक्षिण भारत के प्रदेशों ने मास की समाप्ति पूर्णिमा को होता है, वहां भाद्रपद कृष्ण पक्ष को पितर पक्ष मानते हैं। श्राद्ध बारह प्रकार के माने गये हैं। पितरों का पिण्ड दान करने का सबसे बड़ा स्थान गया बिहार माना जाता है। मान्यता है कि गया में पितरों को पिण्डदान कर देने वे पूर्ण मुक्त हो जाते हैं।
जीते जी दें सम्मान :
भारत के मुगल सम्राट शाहजहां ने एक बार अपने लड़के औरंगजेब को लिखा था कि तुमसे तो हिन्दू लोग ही बहुत अच्छे हैं, जो मरने के बाद भी अपने पिता को जल और भोजन देते हैं। तूने तो अपने जीवित पिता को भी दाना-पानी के बिना तरसा दिया है। इस विषय पर विशेष विचार करने से यही प्रतीत होता है कि पितृ-मोक्ष का महत्त्व इस बात में नहीं है कि हम श्राद्ध कर्म को कितनी धूमधाम से मनाते हैं और कितने अधिक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं |
वरन् उसका वास्तविक महत्त्व यह है कि हम अपने पितामह आदि गुरुजनों की जीवितावस्था में ही कितनी सेवा, सुश्रूषा, आान् पालन, सम्मान करते हैं। चाहे अन्य लोग इसका कुछ भी अर्थ क्यों न लगावें, पर हम तो यही कहेंगे कि जो व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता आदि की सेवा नहीं करते, उल्टा उनको दुःख पहुंचाते हैं या उनका अपमान करते हैं, बाद में उनका पिण्डदान और श्राद्ध करना कोरा ढोंग है और उसका कोई परिणाम नहीं।
श्राद्ध का आध्यात्मिक पक्ष :
मरे हुए व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म करने से कुछ लाभ है कि नहीं? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि होता है, अवश्य होता है। संसार एक समुद्र के समान है, जिसमें जल कणों की भाँति हर एक जीव है। विश्व एक शिला है, तो व्यक्ति एक परमाणु। जीवित या मृत आत्मा इस विश्व में मौजूद है और अन्य समस्त आत्माओं से उसका संबंध है। संसार में कहीं भी अनीति, युद्ध, कष्ट, अनाचार, अत्याचार, हो रहे हों, तो सुदूर देशों के निवासियों के मन में भी उद्वेग उत्पन्न होता है। जाड़े और गर्मी के मौसम मे हर एक वस्तु क्रमशः ठण्डी और गर्म हो जाती है।
छोटा सा यज्ञ करने पर भी उसकी दिव्यगंध व भावना समस्त संसार के प्राणियों को लाभ पहुंचाती है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। यह सूक्ष्म भाव-तरंगें तृप्तिकारक और आनन्ददायक होती हैं। सद्भावना की तरंगें जीवित मृत सभी को तृप्त करती हैं, परन्तु अधिकांश भाग उन्हीं को पहुंचाता है, जिनके लिए वह श्राद्ध विशेष प्रकार से किया गया है।