ज़िन्दगी जब मुझे तन्हाई में मिल जाती है,
अपने दुःख दर्द को रोते हुए दिखलाती है।
तेरी कोशिश में कहीं कोई कमी तो हो गी,
मेरी नाकाम तमन्नाओं को समझाती है।
कोई मायूसी नहीं देती नतीजा फिर भी,
मुझ को मायूसी ही हर सिम्त नज़र आती है।
बस ख़्यालात की कलियों से सजा कर सेहरा,
आरज़ू ख़्वाब में माथे पे सजा जाती है।
बीती बातों में उलझना मेरी तक़दीर में है,
आ के अश्कों की नदी आँखों में भर जाती है।
आँख तो आँख है अब इस पे भरोसा कैसा,
दिल में जो राज़ छिपे रहते हैं कह जाती हैं।
ज़िन्दगी तेरी हक़ीक़त को समझते हम हैं,
मौत आ कर तेरी औक़ात दिखा जाती हैं।
जिस ने सच बात को सीने से लगा रक्खा है,
उन जियालों से सदा मौत भी घबराती है।