रगों में जमते हुए ख़ू से रवानी लेकर , आसमानों पे चलो अज़में जवानी लेकर

रगों  में  जमते  हुए   ख़ू से  रवानी ले कर,

आसमानों पे चलो अज़में  जवानी  ले कर।

जा के हर बज़्म में बेख़ौफ़ सुना कर आओ,

अपने अजदाद की हर एक  कहानी ले कर।

 

तेरे  इनआम  में   तारीक  शबें  ही  मिलतीं,

क्या करूँ गा मैं उसे ज़िल्ले सुब्हानी ले कर।

दिल की तारीकी करे ख़त्म वो किरने लाओ,

शम्मा-ए  इल्म  से  इक सुबह सुहानी ले कर।

 

न  कोई  ख़ौफ़  हो  न  ख़ौफ़  का अंदेशा हो,

माँ की आग़ोश खिले अपनी निशानी ले कर।

हम  ज़माने  से  नहीं  हम से ज़माना हो अब,

लिख  दो  उनवान नया तर्ज़े ज़मानी ले कर।

 

उस पे मायूसी का साया नहीं पड़ता है कभी,

जो  कभी  बैठा नहीं अश्क फ़िशानी ले कर।

अब नदी नालों में मज़हब का भरा है कचरा,

जाये प्यासा कहाँ यह   तशनादहानी ले कर।

 

‘मेहदी’ की बातों पे हंसता है ज़माना फिर भी,

वह  बढ़ा  जाता  है  दरिया सी रवानी ले कर।

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मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हाल्लौरी “