लाओ काग़ज़ क़लम अब वसीयत लिखें,
अपने हर जुर्म की ख़ुद शहादत लिखें।
मंदिरों मस्जिदों में है तूफ़ां उठा,
कैसे इस को भला हम इबादत लिखें।
आग बरसी है घर पर अदावत भरी,
उन की ज़िद है इसे हम मोहब्बत लिखें।
अए मेरे दिल ज़रा मेरी आहें तो दो,
अश्क से दर्दे दिल की इबारत लिखें।
चुटकले तंज़ नाज़िम सुना कर गए,
क्या करें कैसे इस को निज़ामत लिखें।
खूं की लाली से परचम रंगा सब का है,
सारे अख़बार फिर भी सियासत लिखें।
बिक रहे हैं क़लम बिकते अलफ़ाज़ हैं,
किस क़लम से इसे हम सहाफ़त लिखें।
मेरे होते हुए ग़ैर मुमकिन है यह,
तुम अदावत करो सब मोहब्बत लिखें।