राजनीतियों में अनीतियों की बाढ़

रिपोर्ट –  विश्वप्रकाश थपलियाल  

रीडर टाइम्स 

12300000000

                                          विश्वप्रकाश थपलियाल  

यद्यपि नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फ़ौज के वीर सेनानी दिल्ली के लाल किले पर अपना झंडा न फहरा सके . किन्तु उन महान देश भक्तो ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया.  जय हिन्द के नारो से आकाश गूंज उठा देश की आजादी के लिए बच्चा-बच्चा क़ुरबानी देने निकल पड़ा .  भारतीय सेना में भी विद्रोह की चिंगारियां सुलगने लगी अंग्रेज स्थित की भयंकरता को भांप गए.  ऐसी स्थित में अंग्रेजो को भारत छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा . आजादी के नाम पर भारत की बर्बादी के षड्यंत्र रचे गए.  अंग्रेजो ने बड़ी चालाकी से कांग्रेस के बड़े नेताओं को विश्वास में लेकर जैसा चाहा वैसा कर दिया . कहावत है – आँख भी रह  जाये और फूल भी कट जाये फूल तो कट गया ,पर आँख ही फूट गई .

15 अगस्त 1947 के बाद भारत से अंग्रेज तो गए किन्तु विवाद विध्वंस कर गए और सर्वनाश के बीज बो गए भारत की अखंडता और एकता को हर तरह से नष्ट कर अशांति, अत्याचार,हिंसा एवं उत्पीड़न की भयंकरता को जन्म दिया गया . इस तरह भारत को आजाद करने के बजाये सब तरह से बर्बाद किया गया.  सत्ता के भूखे नेताओं ने भारत की जनता को भयंकर धोखा दिया  और उनके साथ घोर विश्वासघात किया भारत के विभाजन का उद्देश्य क्या था.  क्या हिन्दू ,मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते थे ? वास्तव में एक व्यक्ति की राजनैतिक महत्वकांक्षा को को पूर्ण करने के लिए देश का विभाजन स्वीकार करना पड़ा.  भारत पकिस्तान के रूप में अखण्ड-भारत को खण्ड-खण्ड कर केवल दो भागो में नहीं, वरन कई भागो में बाँट दिया किस कारण भारत के हृदय कश्मीर को निकाल कर उसे एक विकत समस्या बनाया गया ? जिस राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए लाखो सपूत बलिदान हुए ,उस महान राष्ट्र की बलि केवल एक व्यक्ति के लिए दी गयी भारतीय इतिहास की यह एक भयंकर आश्चर्य जनक घटना है .

यदि हिन्दू मुस्लिम एक साथ न रहना चाहते तो शांति से धैर्यपूर्वक उनको हिन्दुस्तान -पकिस्तान अर्थात हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र के रूप में अलग -अलग कर आसानी से समस्या को हल किया जाता . दोनों मित्र राष्ट्र होते और सम्पूर्ण शक्ति ,समय एवं साधनो का सदुपयोग अपने- अपने राष्ट्र निर्माण में करते.  हिन्दू मुस्लिम तथा मंदिर मस्जिद का विवाद न रहता और हमेशा के लिए शांति हो जाती,  किन्तु प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने की जल्दबाजी में नेहरू जी अधीर हो गए.  स्वार्थ व्यक्ति को अँधा बना देता है और वह स्वार्थवश भयंकर से भयंकर महान अपराध कर बैठता है.  प्रधानमंत्री का पद पाने के लिए देश का विभाजन तो स्वीकार किया गया किन्तु वास्तव में अब तक भी विभाजन नहीं हुआ.  जल्दबाजी में देश के विभाजन की सीमा तय नहीं होने दी गई . कहा गया की देश विभाजन की समस्याओं को बाद में देख लेंगे.  विभाजन से पूर्व ही नेहरू जी खण्डित भाग्य विधाता बन बैठे इस तरह शुरुआत में ही भारत की राजनीति में अनीतियों की बाढ़ आ गई.  जिस देश की स्वाधीनता और अखण्डता के लिए लाखो मर मिट गए . उस महान देश को सत्ता सुख भोग की जल्दबाजी में मिटा दिया गया इस तरह देश में चारो तरफ अशांति और भयानक तनाव का माहौल बन गया.

देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे चारो और मार -काट और लूट -पात मच गयी. भयंकर हत्याकांड हुए और अरबो -खरबो की अथाह संपत्ति लूटी गई लाखो लोग मारे गए , लाखो घर से बेघर हो गए और लाखो माँ बहनो, बहु -बेटियों का अब तक पता तक नहीं चला . प्रचंड हिंसा की वह अंधी अब तक भी नहीं थमी ,रुकी नहीं .  गाँधी की आंधी ने सम्पूर्ण देश को अन्धकार में धकेल दिया . भयंकर विनाश होने पर भी सत्ता और धन के जोर पर अब तक प्रचार किया जाता है कि सत्य -अहिंसा के चमत्कार से आजादी मिली कहावत है ” जैसा कर्म वैसा फल और जैसा बीज वैसी फसल ” वास्तव में सत्य अहिंसा के नाम पर असत्य ,हिंसा और अधर्म के बीज बोये गए थे . आज भारत वही फसल काट रहा है . यदि धैर्य से कार्य लिया जाता और एक व्यक्ति का हित न देख कर सब के हित में सोचा जाता तो आज देश की ऐसी दुर्दशा न होती.    जल्दबाजी का परिणाम कितना भयंकर विनाशकारी हुआ ? गाँधी जी राजनैतिक महात्मा थे , किन्तु उन्होंने अपने को असली महात्मा सिद्ध करने के लिए त्रष्टिकरण की नीति को बढ़ावा दिया और हिन्दुओं के हितो को कुचल डाला . यदि गाँधी जी चाहते तो देश का विभाजन नहीं हो सकता था.  इस सम्बन्ध में महात्मा रामरत्न  ने सन गाँधी जी को सचेत कर दिया था . यदि गाँधी जी मातम रामरत्न जी की बात मान जाते तो आज देश की ऐसी दुर्दशा न होती . कांग्रेस के शासन काल में राष्ट्रहित को एक तरफ कर ” वोट बैंक ” के निर्माण पर सर्वाधिक जोर दिया गया.

” वोट बैंक ” बनाने के लिए अनेक सूत्र खोजे गए और अलपसंख्यको को लालच दिए गए लोक तंत्र के नाम पर भीड़तंत्र एवं लूटपाट को बढ़ावा मिला भेड़ो की भीड़ में जो जितना बड़ा भेड़िया रहा ,वह उतना ही बड़ा नेता बन बैठा भारत का संविधान भी ऐसा बनाया गया जो भावनात्मक एकता को जोड़ता नहीं तोड़ता है उसमे अपनी माटी की सुगंध नहीं और भारतीय आत्मचेतना नहीं है नेहरू जी ने भारत को इंग्लैंड बनाना चाहा इसी कारन मलीन भोगवादी कुसंस्कृति को बढ़ाया गया और भारतीय पवित्र संस्कृति को नष्ट करने के अनेक प्रयास किये गए इंग्लॅण्ड के कूटनीतिज्ञों ने कहा कि जब तक भारत का मस्तक हिमालय और हिमालय कि पावनता रहेगी तब तक भारतीय संस्कृति को मूलतः नहीं मिटाया जा सकता इसी कारण किसी भयंकर षङयन्त्र के तहत तिब्बत को चीन का अंग बताया गया और तिब्बत पर आक्रमण कराने की खुली छूट दी गई .शक्तिशाली देखकर चीन के गीत गए गये.

”हिंदी -चीनी  भाई -भाई ” किन्तु उन चालबाजी नारो का प्रभाव चीन पर नहीं पड़ा.  महर्षि चरक ने ठीक ही कहा – ” कमातुराणां न भयनं लज्जा ” जो शारीरिक तुच्छ भागो के लिए आतुर होते है.  उन कामातुर को न भय है ,  न लज्जा ” कामातुर नेताओं की स्वार्थपरता एवं नीचता के कारण भारतीय राजनीति में अनीतियों की बाढ़ आ गई . समस्याओं को सुलझाने की बजाय और अधिक उलझाया गया . सन 1962 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर लाखो तिब्बतियों की हत्या कर डाली और तिब्बत को हड़प लिया .  भारत के नेता तिब्बत का तमाशा देखते रहे . किसी तरह दलाई लामा अपने साथ हजारो तिब्बतियों के प्राण बचाकर भारत आ गये.

भारत पर अचानक चीन ने आक्रमण कर डाला हजारों भारतीय सैनिक मारे गये और हिमालय से सर्वाधिक सुन्दर भागो में चीन ने कब्ज़ा कर लिया.  मानसरोवर कैलाश की याद आती है . आध्यात्मिक संस्कृति का महान आधार स्तम्भ है – हिमालय .  हिमालयी संस्कृति ही भारतीय संस्कृति है.  अतः भारत के लिए हिमालय और तिब्बत का सर्वाधिक महत्व है.  परमपूज्य दलाई लामा तिब्बत के महान धर्मगुरु ,विश्वशांति दूत एवं सुसंस्कृत दिव्य पुरुष है.  हिमालय भारत का मस्तक एवं तिब्बत भारत का नेत्र है , किन्तु आज मस्तक एवं नेत्र विहीन है भारत .  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तिब्बत ने सहयोग दिया.  सन 1921 के असहयोग आंदोलन में तिब्बत ने सहयोग दिया.  सन 1921 के असहयोग आंदोलन में तिब्बतियों ने खादी ग्रामोद्योग के व्यापक विकास में महात्मा रामरत्न को बड़ा सहयोग दिया था. भोटिया लोगो ने भी उस आंदोलन को बढ़ावा दिया था . गोचर जनपद चमोली ( उ.प्र.) में अलकनंदा के पवित्र तट पर स्थापित होने वाले कैलाश विश्वविद्यालय के लिए भारत के अनेक राजा – महाराजा देशभ्रम मछारमा रामरत्न के सहयोगी थे ”  .

हिमालय में संजीवनी एवं अमृत बुटियाँ के उन विश्व महान शोधकर्ता में वर्षो तक तिब्बत के लामाओं , योगियों और भेड़-बकरियों को चुगाने वाली महिलाओं ने अनेक तरह से महात्मा रामरत्न को सहयोग दिया था . महात्मा रामरत्न की कई दुर्लभ पांडुलिपियों को ब्रिटिश शासन द्वारा ब्रिटिश म्यूज़ियम इंग्लैण्ड भेजा गया और कई पांडुलिपियों को नष्ट किया गया .  उनकी महान कृति ” विश्वदर्शन ” ने संसार में भारत को ज्ञान गौरव प्रदान किया . शुरू में अंग्रेजो को विश्वास नहीं हुआ कि गुलाम देश भारत का एक पहाड़ी व्यक्ति भी विश्व में इतना महान वैज्ञानिक बन सकता है . भोगवादी अंग्रेज तो केवल भौतिक विज्ञान तक ही सीमित रह गये और असीम अनंत अध्यात्म विज्ञान के इस चमत्कार ने उन का अहंकार चकना चूर कर डाला.  ज्ञान विज्ञान में अज्ञानता से भ्रमित अंग्रेजो की स्थिति ऐसी हो गई – जैसी सूर्य उदय होने पर जुगनू की दशा हो जाती है मदन मोहन मालवीय ,महर्षि अरविन्द ,रविंद्र नाथ टैगोर ,महात्मा गाँधी ,पुरुषोत्तम दास टण्डन, तपोवनम ब्रह्मचारी चेतन स्वरुप और जर्मन के महान दार्शनिको की सम्मतियाँ पुस्तक विश्वदर्शन में प्रकाशित है . हिमालय के एक महात्मा ने लिखा ” महात्मा रामरत्न ने योग समाधि में दिव्य दृष्टि से विश्व विराट का दर्शन कर पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया भारत में योग राज भगवान श्रीकृष्ण एवं जगतगुरु आदि शंकराचार्य ऐसे ही परम तत्वाज्ञानी हुए  ब्रह्म ज्ञान को नमस्कार है ”  

सन 1940 में महात्मा रामरत्न ने गाँधी जी को लिखा था ” मुझे ऐसा आभास होता है कि अंग्रेजो को मजबूर होकर भारत छोड़ना ही पड़ेगा.  सन 1947   तक भारत स्वतंत्र होगा किन्तु उस समय ब्रिटिश सरकार भारत और भारतीयों की हत्या का भयंकर षड्यंत्र करेगी . उस षड्यंत्र को आत्म शक्ति से विफल किया जा सकता है. स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात देश के नव निर्माण के लिए अधिक त्याग , तपस्या,ज्ञान ,विज्ञान की आवश्यकता होगी अपनी योगवादी महान संस्कृति के बल पर ही हम पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर सकने में समर्थ हो सकते है . आपके नेतृत्व में कांग्रेस जनों के त्यागमय जीवन का नैतिक स्तर जितना ऊँचा होगा , उतना ही अधिक देश की जनता जीवन के हर क्षेत्र में ऊपर उठेगी.  अतः कांग्रेसजन स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा देने के साथ ही अपना आध्यात्मिक निर्णय करने में लगे रहे . ताकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तेजी से देश का निर्माण किया जा सके निर्माण हेतु चारित्रित बल आवश्यक है ” .

तत्पश्चात हिमालय में कैलाश ,मानसरोवर,नीलंग स्वार्गारोहण आदि तीर्थ स्थानों की टिकट यात्रा पर जाने के पूर्व ही सन 1945 में महात्मा रामरत्न ने महर्षि अरविन्द और पंडित मदन मोहन मालवीय जी को लिखा था – ” सन 1947 भारत के लिए सौभाग्य अथवा दुर्भाग्य का समय है . उस समय भारत स्वतंत्र होगा या स्वतंत्रता के नाम पर खण्ड खण्ड कर अखण्ड भारत की हत्या कर दी जाएगी . अंग्रेज जाते-जाते भारत का विनाश -सर्वनाश करने की साजिश करेंगे . उस षड्यंत्र से केवल गाँधी जी ही बचा सकते है. स्वाधीनता के लिए देश गाँधी जी के पीछे कुर्बानियां देने को खड़ा है . यह परीक्षा का कठिन समय होगा . यदि उस समय गाँधी जी भी ब्रिटिश सरकार के षड्यंत्र के अंतर्गत किसी दबाव में आकर सत्य व अहिंसा के मार्ग से विचलित होंगे , तो देश में भयंकर हिंसा भड़क उठेगी और लाखो निर्दोष लोगो की हत्या होगी.

लाखो घर से बेघर होंगे और लाखो अपने बन्धु-वांधुओं से बिछुड़ जायेंगे . इस तरह देश मिट सकता है बंट सकता है . इसलिए महात्मा रामरत्न ने राय दी थी कि ब्रिटिश सरकार के साथ स्वतंत्रता की अंतिम निर्णायक बातचीत में कांग्रेस का कोई ऐसा नेता अगवा नहीं होना चाहिए जो भारतीय होकर भी इंग्लैंड की भोगवृत्ति का समर्थक हो . सत्तालोलुप , अहंकारी एवं पाश्चात्य कुरंग हुए भौतिकवादी व्यक्तियों को ब्रिटिश सरकार आसानी से अपने षड्यंत्र का शिकार बनाकर भारत के टुकड़े करने को सहमत कर सकती है . यदि ऐसा होगा तो उस स्वतंत्रता से परतन्त्रता अधिक बदत्तर नहीं है .  हम मातृभूमि को अंग्रेजो की दासता से मुक्त करना चाहते है , किन्तु कोई भी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकता कि पहले अंग्रेज उसकी माँ के टुकड़े टुकड़े कर हत्या कर डाले और बाद में उस लाश का एक टुकड़ा स्वतंत्रता के नाम पर उसी के हाथ में थमा दे . हम परतंत्र माँ को जीवित ही स्वतंत्र करना चाहते है . स्वतंत्रता के नाम पर सत्ता का मोह या किसी भी महान से महान स्वार्थवश मातृभूमि कि हत्या का कलंक अपने माथे पर कौन लगने देगा ?

महात्मा रामरत्न की राय नहीं मानी गई और अंत में वही हुआ जिसकी संभावना थी . ब्रिटिश सरकार अपने षड्यंत्र में पूर्ण सफल हुई . जब विनाशकाल आया तो कांग्रेस नेताओं के मन में भोग की प्रबल महत्वाकांक्षा जाग उठी . सत्ता सुख के मोह में फंस कर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया.  तब सत्य -अहिंसा के पुजारी गाँधी जी भी मौन हो गये.  वह अखण्ड भारत का महान प्रलयकारी दुर्भाग्य था . कोई भी अखण्ड भारत को खण्ड- खण्ड होने से नहीं बचा पाया . महात्मा रामरत्न जैसे महान राष्ट्रभक्तो के लिए वह भयंकर दुर्घटना असहय वेदना बन गई.

15 अगस्त ,1947 के पश्चात् कांग्रेस के शासन काल में महात्मा रामरत्न को अत्यधिक परेशान किया .  उनको पागल घोषित कर कई बार गिरफ्तार किया गया और कई बार जेल में डाला गया . उनके परिवार को आतंकित , उत्पीड़ित ,एवं हर क्षेत्र से उपेक्षित किया गया.  उनको जहर दिया गया और उनकी हत्या का षड्यंत्र रचा गया . यूनान के महान दार्शनिक सुकरात और महात्मा ईशा मसीह की तरह महात्मा रामरत्न को भी अनेकानेक भयंकर कष्ट देकर मारा गया.  सत्य से असत्य का सदा विरोध रहा.  राक्षसों ने हर युग में देवताओं को सताया . वास्तव में कांग्रेस शासन में आध्यात्मिक पुरुषो के साथ अनेक अत्याचार किये गए.  जो असली महात्मा और राष्ट्र निर्माता थे , उनकी दुर्दशा की गई तथा जो भयंकर राष्ट्र हत्यारे थे उन को राष्ट्र निर्माता कहा गया .   सत्ता ,धन एवं पदों का सदुपयोग वही सज्जन कर सकते है . जिनका विशाल हृदय सेवा ,ज्ञान एवं त्याग की पवित्र भावना से भरा हो .  केवल बड़े पद , धन , राजसत्ता एवं बड़ी उपाधियाँ पाकर कोई बड़ा नहीं होता.  बड़ा वही है जो गुण,कर्म , स्वभाव एवं ज्ञान से बड़ा है .  भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है उच्च विचार -परम उदार ,विश्व परिवार अतः मन की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर परम गुरु पुरुषार्थ के लिए उठो -”बुदं हृदयदौर्बल्यं व्यक्तोविष्ठ परम तप ” .