रिपोर्ट :- मार्कण्डेय शुक्ला
रीडर टाइम्स
* मार्च से मई तक का पीक सीज़न चढ़ा लॉकडाउन की भेंट।
* विदेशों और देश से मिले आर्डर कैंसिल होना शुरू ।
* पैसे न मिलने से कारीगर भुखमरी की कगार पर ।
* पर्यटक सबसे बड़े खरीददार, पर्यटन वैसे ही रहेगा ठप्प ।
लखनऊ. पूरा देश इस समय कोरोना से युद्ध कर रहा है और धीरे धीरे इसमें सफलताएं मिलनी शुरू भी हो गयी हैं। आज से देश भर में बहुत सारे सरकारी विभाग, उद्योग, आकस्मिक सुविधाओं के साथ न्यायलय, कृषि से सम्बंधित उद्यम और तमाम अन्य ज़रूरी सुविधाओं को सशर्त शुरू कर दिया है , लेकिन इस जंग में लखनऊ का चिकन उद्योग हार गया है। लखनऊ के चिकन उद्योग का डंका पूरे विश्व में बजता है और अमेरिका , यूरोप , गल्फ से लेकर सभी देश भरी मात्रा में चिकन का सामन भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ से खरीदते हैं । इस साल भी चिकन उद्योग का कारोबार लगभग 2000 करोड़ के पार आँका जा रहा था । पूरे विश्व से आर्डर इस साल के शुरुवात तक आ चुके थे और उसको पूरा करने के लिए सभी उद्योग माल खरीदकर कारीगरों को दे भी चुके हैं , जिनमे ज़्यादार कंपनियों का माल बन भी गया है, लेकिन पूरे विश्व और हिंदुस्तान में कोरोना संकट के चलते लोखड़ौन हो गया है जिसकी वजह से माल जहाँ के तहाँ फंस गया है , और आर्डर भी सप्लाई नहीं किये जा सकते ।
कारोबारियों से वार्ता करने पार पता चला कि मार्च से मई तक सीजन पीक पर रहता है। मार्च में हमें घरेलू ग्राहक मिलते हैं। यहां से माल देश भर में जाता है। अप्रैल और मई में माल की डिलीवरी विदेशों में होती है। खासकर यूरोप के देशों में इस मौसम में चिकन की बहुत मांग रहती है।
किन समस्याओं से जूझ रहा लखनऊ चिकन उद्योग
लखनऊ में लगभग 100 के आसपास बड़े जबकि 5000 के लगभग छोटे उद्यमी हैं। एक बड़े उद्यमी या कंपनी के स्टाफ व कारीगारों की संख्या 4 हजार के करीब है। सभी भुखमरी की कगार पर हैं। माल इनके पास तैयार है, पर लाएं कैसें। कारीगर बार-बार एडवांस मांग रहे हैं। मार्किट में डिमांड शून्य है । भुगतान के संकट के चलते वे भुखमरी की कगार पर हैं। ऐसे में कारीगरों के पास माल तैयार है पार कोई भी उद्यमी उसे ले नहीं रहे हैं क्यूंकि लॉकडाउन की वजह से लोकल डिमांड तो वैसे ही शून्य है और जो आर्डर पहले से लगे हुए हैं उनका पेमेंट आया नहीं है और पैसे आ भी जाये तो ऐसे में डिलीवरी देना संभव नहीं है , सो उद्योग करीगरों को पैसे का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं . इसी उधेड़बुन में चिकन का सीज़न भी ख़त्म होने की तरफ बढ़ रहा है, जिसके बाद ये सीज़न अगले साल ही आएगा ।
अब सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि चिकन उद्योग के लिए संकट कुछ महीने का न होकर पूरे 1 साल से ज़्यादा का है क्यूंकि इससे पहले कारोबार पूरे वेग से पिछले साल ही हो पाया था । चिकन कारोबार में 80 से 90 फीसदी खरीदार तो पर्यटक होते हैं। जब यात्रा ही नहीं तो पर्यटक कहां से मिलेंगे। कारोबारी कहते हैं कि देश-दुनिया में जो हालात हैं, उससे लगता है इस वर्ष पर्यटक मिलेंगे ही नहीं, यानी पूरा सेक्टर ही ठप्प हो गया है ।
कारोबारियों के अनुसार स्पेन, बांग्लादेश, अमेरिका, दुबई, श्रीलंका, यूरोप समेत दुनिया भर में चिकन लखनऊ से ही जाता है। बड़ी संख्या में आर्डर तैयार किए गए थे। ऐसे में आर्डर जहाँ के तहाँ फसे हुए हैं .इस संकट में आर्डर कैंसिल होना तो तय हैं, जिसके शुरुवात हो भी चुकी हैं , क्यूंकि सभी के लिए चिकन पहनना प्राथमिकता नहीं है , लोग पहले अन्य ज़रूरतें पूरी करेंगें , वैसे भी कारीगर माल बना रहे हैं, न जाने कितने हाथों से होकर वह गुजर रहा है। लॉकडाउन के बाद माल को सैनिटाइज करना बड़ी चुनौती होगी। दूसरी तरफ उद्योगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर कारीगरों को भुगतान नहीं किया जायेगा तो माल फंस सकता है ।
उत्तर प्रदेश सरकार इस समय सभी तबकों का ख्याल रखने की कोशिश कर रही है । लाखों किसानों और अन्य योजनाओं के अंतर्गत आने वाले लाभार्थियों को आर्थिक मदद दी जा रही है । अब देखना यह है कि सरकार चिकन उद्योग के लिए क्या व्यवस्था करती है जो इस संकट भरे समय में संजीवनी का काम करे ।