(वरिष्ठ संवाददाता ) हर्षवर्धन शर्मा
रीडर टाइम्स
• साइबर सेल की त्वरित कार्रवाई से चार अलग-अलग प्रकरणों में धोखाधड़ी की कुल 1,50,000/- राशि को रिफंड करवाया गया
जयपुर : पुलिस आयुक्त जयपुर आनंद श्रीवास्तव ने बताया कि दिनांक 5 मई 2020 व 07 मई 2020 को मात्र 2 दिन में चार अलग-अलग प्रकरण परिवारों में साइबर ठगों द्वारा हड़पी गई कुल राशि 1,83,000 में से करीब 1,50,000 को पुलिस की सजगता से रिफंड /अमाउंट फ्रिज करवाया गया है।
• इन प्रकरण परिवादों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकाऱ है
पुलिस आयुक्त ने बताया कि साइबर क्राइम के तहत अभियोग संख्या 44 / 20 धारा 429, 420 भारतीय दंड संहिता साइबर पुलिस थाना जयपुर आयुक्तालय में दिनांक07/ 05/ 20 को जगदीश प्रसाद पुत्र धनसीराम जाति जाट उम्र 45 साल में दर्ज करवाया था कि उसके मोबाइल नंबर पर अज्ञात नंबरों से परिचित दोस्त बनकर फोन आया और बोला कि अपने पैसे किसी से ऑनलाइन ट्रांसफर करने को कहते हुए झांसे में लेकर परिवादी व उसके पुत्र के खाते से लिंक भेज कर तीन ट्रांजैक्शन ( 25000,25000 व 49990) में कुल ₹100000 की धोखाधड़ी कर ली गई । प्रभात संख्या 282/20 , दिनांक 05/05/20 को परिवादी मोहित जैन पुत्र त्रिलोक चंद जैन निवासी 1200/13 किसान मार्ग,बरकत नगर जयपुर में पुलिस थाना बजाज नगर जयपुर पूर्व में मुकदमा दर्ज करवाया कि दिनांक 05/05/20 को मेरे दो खातों से (35000 और 5000) कुल 40000 किसी अज्ञात व्यक्ति ने झांसी में लेकर निकाल लिये। इसके अलावा परिवाद संख्या 413/20 पुलिस थाना सेज जयपुर पश्चिम में दिनांक 05/05/ 20 को परिवादी संजय शर्मा निवासी भमौरिया, आर्य कॉलेज के पास में दर्ज करवाया कि मेरा एचडीएफसी बैंक में खाता है, मेरे पास एक अज्ञात नंबर से फोन आया और एक लिंक भेजा जिस पर क्लिक करने से मेरे खाते से दो ट्रांजैक्शन (10,000/- और 3000) कुल 13000/- कट गये।इसके अलावा परिवाद संख्या 69/20 के अंतर्गत परिवादी मनोज कुमार ने साइबर थाना जयपुर में मामला दर्ज करवाया कि मेरे दोस्त की फेसबुक आईडी हैंग कर, उससे किसी अज्ञात व्यक्ति ने पैसे मांगे, जिस पर मेरे द्वारा कुल 20000/- ट्रांसफर कर दिये। जिसका मुझे मेरे दोस्त से बात करने पर पता चला कि उसकी आईडी हैक कर ली है और उसके साथ धोखाधड़ी हो गई है। पुलिस आयुक्त श्रीवास्तव ने बताया कि अशोक गुप्ता अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) व योगेश यादव पुलिस उपायुक्त (अपराध) के निर्देशन में कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण की रोकथाम हेतु चल रहे लॉक डाउन के दौरान सोशल मीडिया पर अफवाह व दुष्प्रचार रोकने के लिए कमिश्नरेट में साइबर पेट्रोलिंग हेतु साइबर सेल 24 स7 कार्यरत है तथा ऑनलाइन ठगी की वारदातों को ट्रेस करने की कार्रवाई भी की जा रही है। विमल सिंह, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त संगठित अपराध के सुपरविजन में इमीचंद्र प्रभारी थाना अधिकारी साइबर थाना व राकेश झाझडियॉ कॉन्स्टेबल 7765 साइबर सेल के द्वारा प्राप्त सूचना पर मात्र 48 घंटे में अपनी कार्यकुशलता का एक परिचय देते हुए त्वरित कार्रवाई कर, अलग-अलग चार प्रकरण /परिवादो में कुल करीब 1,50,000 /-की धोखाधड़ी रकम को संबंधित बैंक में रिफंड फ्रिज करवाई गई हैं ।जिनमें अग्रिम कार्रवाई जारी है।
• साइबर ठगों के द्वारा पीड़ित को झांसे में लेने का तरीका
पुलिस ने बताया कि ये साइबर ठग लोगों को प्रसिद्ध बनकर फोन करते हैं। पीड़ित व्यक्ति को विश्वास में लेते हैं कि स्वयं के पैसे किसी व्यक्ति में अटके हुए हैं और लॉक डाउन के कारण है वह उसके पास में जा नहीं पा रहा है। इसके बाद ठग उक्त बहाना बनाकर परिवादी के फोनपे मैं पैसा डलवाने और बाद में नगद देने की कह कर झांसे में ले रहे हैं। शातिर ठग झूठे गूगल फॉर्म/ पेज का लिंक बनाकर परिवादी को भेजते हैं, जिस पर क्लिक करने पर झूठा /मिथ्या फॉर्म/ पेज खुलता है, जो हूबहू फोनपे या अन्य ई-वॉलेज जैसा ही दिखाई देता है।आमजन असली /ओरिजिनल फोनपे का पेज समझकर अपनी बैंक की गोपनीय जानकारी उसमें भर देते हैं। इस प्रकार परिवादी की गोपनीय जानकारी ठगों के पास चली गई और परिवादी के खाते से अलग-अलग ट्रांजैक्शन के माध्यम से धोखाधड़ी हो जाती है।
• ठगों का वारदात का तरीका
साइबर ठग द्वारा ई- वॉलेट/ यूपीआई गेटवे (फोनपे,भारत पेज गूगलपे व पेटीएम )का उपयोग किया जा कर धोखाधड़ी कर रहे हैं।वैसे तो सभी ई-कॉमर्शियल एप्लीकेशन अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए ग्राहकों के डाटा को सुरक्षित बनाते हैं। जैसे फोनपे/गूगलपे/भारतपे,आदि एप्लीकेशन वीपीए (virtual payment address) पर वर्क करती हैं, यानी यूजर के खाते (UPI ID) से पैसा जिस खाते या यूपीआई आईडी में जाता है, उसके बीच में यूजर/ ग्राहकों की निजी जानकारी कोई हैंक कर चुरा नहीं ले । फिर भी कितने सुरक्षा चक्र को भी साइबर ठग आसानी से भेद देते हैं, चूंकि ठग ग्राहकों /उपयोगकर्ता को इनकी पूरी समझ नहीं होने का फायदा उठाकर उनको झांसे में ले लेते हैं। साइबर ठग द्वारा e-commercial एप्लीकेशन जैसा दिखाई देने वाला फैक /झूठा पेज बनाया जाकर ,उसका लिंक तैयार कर परिवादी को भेजा जाता है और उस पर क्लिक करवाकर जो जानकारी ठगी करने के लिए उपयोगी है वह जानकारी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं और परिवादी के साथ अलग-अलग ट्रांजैक्शन करके ज्यादा से ज्यादा रूपों की धोखाधड़ी कर लेते हैं।
• पुलिस टीम द्वारा किए गए प्रयास
राकेश झांझडियॉ द्वारा परिवादी से धोखाधड़ी के तरीके को समझकर फोनपे के नोडल ऑफिसर से संपर्क कर धोखाधड़ी किए गए लेन देन की ट्रांजैक्शन आईडी आर नंबर बीपीए पेमेंट गेटवे आदि का पता किया गया।फोन पे से प्राप्त जानकारी का विश्लेषण कर संबंधित गेटवे से उक्त धोखाधड़ी के ट्रांजैक्शन के ट्रांजैक्शन की जानकारी प्राप्त की गई। इसके अलावा पुलिस से बचने के लिए शातिर ठगों द्वारा पैसा एक खाते से दूसरे खाते तथा दूसरे खाते से तीसरे खाते में इस प्रकार पैसे को कई अकाउंट में घुमाते हैं। इसके बाद विमल सिंह नेहरा (आरपीएस) के प्रभावी और निकट सुपरविजन में राकेश झांझडियॉ साइबर सेल पुलिस आयुक्तालय जयपुर द्वारा तकनीकी सहायता एवं करीब 50- 70 खातों में विशेषण करते हुए अलग-अलग चार प्रकरण पर वादों में कुल 1,83,000 रूपों की की गई धोखाधड़ी राशि में से करीब 1,50,000 को रिफंड/ फ्रीज करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई ।
• पुलिस ने आमजन के लिए दिए सामान्य सुझाव
साइबर ठगी का शिकार होने पर जल्द से जल्द नजदीकी पुलिस थाना में जाकर सूचित करना चाहिए। अनजान नंबरों से आने वाले नंबरों से आने वाले कॉल को हमेशा ध्यान देकर उठाना चाहिए एवं ट्रूकॉलर पर प्रदर्शित होने वाले नाम आईडी को सही नहीं मानना चाहिए ।यदि संभव हो तो अनजान नंबरों से आने वाले व्यक्ति पर तुरंत विश्वास नहीं करना चाहिए ,जब तक कि आप उसको अच्छी तरीके से पहचान ना लें इसके अलावा पुलिस ने कहा है कि किसी को भी लिंक के द्वारा पैसा भेजने एवं प्राप्त करने से बचना चाहिए। जिसकी कमर्शियल एप्लीकेशन का उपयोग किया जा रहा है, उसकी पूरी समझ होनी चाहिए। जैसे- यह कैसे काम करता है अर्थात पैसा एक खाते से दूसरे खाते में कैसे जाता है, आदि के बारे में जानकारी होने पर ही e-commercial एप्लीकेशन का प्रयोग करना चाहिए।
मोबाइल फोन में अनचाहे एप्लीकेशन इंस्टॉल करने से बचना चाहिए तथा ऐसे एप्लीकेशन जिसकी वजह से ऑनलाइन मॉनिटरिंग या कमांडिंग की जा सके कोई स्टॉल से बचना चाहिए या फिर इनका उपयोग करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए मॉनिटरिंग सिस्टम या फोन पर कमांडिंग किए जाने वाले पॉपुलर एप्लीकेशन–TeamViewer, Quick support ,Any desk आदि।