ब्यूरो हैड राहुल भारद्वाज
रीडर टाइम्स न्यूज़
• फाउंडेशन की दमनकारी नीति पर उठने लगे सवाल,सोशल मीडिया पर हो रही कड़ी भर्त्सना
जयपुर : सामाजिक संस्थाओं मे वर्तमान में संस्थापक पदाधिकारियों की तानाशाही बढ़ती जा रही है व इनके कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने लगे है ।ऐसी संस्थाएं राजनेताओं/व्यवसायियों /समाजसेवी/अच्छे सामाजिक कार्यकर्ताओं को समय समय पर जोड़ते रहते हैं ताकि इन्हें धन भी उपलब्ध हो सके व इनके राजनीतिक वर्चस्व में भी वृद्धि हो और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में इन्हें मुफ्त का मैनपावर उपलब्ध हो ।सामाजिक कार्यकर्ताओं की मेहनत का दुरुपयोग करते हुए इन्हें अक्सर देखा जा सकता है।सत्ता बदलने पर ये नए राजेनेताओं को जोड़ लेते है व व्यवसायियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपना कार्य सिद्ध करवा कर उपयोग में लेकर छोड़ देते है औऱ फिर नए कार्यकर्ताओं की तलाश में लग जाते हैं।सामाजिक कार्यकर्ताओं को सन्गठन में अपनी बात रखने पर इनकी बात नही सुनी जाती है और इन्हें सन्गठन से व संगठन के ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।खुद की संस्था को बड़ा दिखाने के चक्कर मे समाज मे इन संस्थाओं द्वारा वैमनस्य पैदा किया जाता है ताकि भीड़ इनके यहां ज्यादा दिखे ।ज्यादा लोगो को जोड़ने या सीधे अर्थों में कहे तो अधिक चंदा और मुफ्त के कार्यकर्ताओं के लिए संस्था को राज्यों/उप इकाइयों में बांट दिया जाता है।इन संस्थाओं द्वारा समाज के लोगों विशेषकर धनाढ्य वर्ग से समय समय पर चंदा भी एकत्रित किया जाता है जिसका हिसाब मांगने या धन की अनियमितता बताने वालों को किनारे कर दिया जाता है या वे खुद ही परेशान होकर हट जाते है।
ऐसा ही एक मामला सामने आया है एक सामाजिक संस्था विप्र फाउंडेशन का जब विप्र फाउंडेशन जॉन 1 के युवा प्रदेशाध्यक्ष सुनील शर्मा ने कोरोना नामक वैश्विक महामारी के संकट मे सभी सामाजिक संस्थाओं सहित विप्र फाउंडेशन से संस्था के फंड को समाज के गरीब, जरूरतमंद व पंडित पुजारी को समर्पित करने की मांग उठाई ।उन्होंने यह बात सन्गठन में आंतरिक रूप से राष्ट्रीय पदाधिकारियों तक पहुचाई व सन्गठन की बैठकों में पहुँचाई जब उनकी बात को अनसुना कर उन्हें दबाव में लाने का प्रयास किया गया तो उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक के जरिए समाज के जरूरतमंद तबके के लोगों को फांउडेशन का फंड समर्पित करने की मांग उठाई इसके बाद उनके दमन का दौर एक बार फिर से शुरू हुआ और सुनील शर्मा को फाउंडेशन के फेसबुक पेज से ब्लॉक किया गया ।इस पर एक बार फिर 28 मई को फेसबुक पर लाइव आकर सुनील शर्मा ने कहा कि” यह विप्र फाउंडेशन की दमनकारी नीति है जब उन्होंने समाज के जरूरतमंद व्यक्तियो, गरीब, पंडित,पुजारी आदि के लिए संस्था का फण्ड समर्पित करने की मांग उठाई तो उन्हें फाउंडेशन के फ़ेसबुक ग्रुप और पेज से ब्लॉक किया गया व विप्र फाउंडेशन मुख्यालय का व्हाट्सएप ग्रुप बन्द कर दिया गया तथा राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने उन्हें अपनी पर्सनल फेसबुक आईडी से भी ब्लॉक कर दिया ।सुनील शर्मा ने विप्र फाउंडेशन के सँस्थापक संयोजक सुशील ओझा व राष्ट्रीय अध्यक्ष महावीर प्रसाद सोती से प्रश्न किया कि फाउंडेशन में समाजहित के नाम पर एकत्रित धन क्या उनकी पैतृक संपत्ति है,यह फंड समाज के जरूरतमंद व्यक्तियों गरीब व पँडित पुजारी की सहायतार्थ क्यों उपलब्ध नही करवाया जा रहा है जबकि इस कोरोना नामक वैश्विक महामारी के संकट में इस फंड की समाज के जरुरतमंद व्यक्तियों को सख्त आवश्यकता थी ।उन्होंने कहा कि जब भी फाउंडेशन का कोई प्रदेश पदाधिकारी सन्गठन में समाजहित का मुद्दा उठाता है तो उनकी मांगों को दबा कर उसका दमन करने का प्रयास किया जाता है।सुनील शर्मा ने कहा कि फाउंडेशन के कोरोना संकट में वितरित 12 लाख थाली वितरण के कार्यक्रम पर सवाल उठाए व कहा कि यह कार्यक्रम केवल कागजो में ही दिखाई दे रहा है धरातल पर कहीं नजर नही आया है उन्होंने इस कार्यक्रम के खर्च के ब्यौरा मांगा है ।उन्होंने कहा कि विप्र महाकुंभ ,विप्र गौरव अवार्ड व विप्र प्रीमियर लीग करवाने वाले लोग कहां गए व उन्हे सन्गठन छोड़ने पर क्यों विवश किया गया ? सुनील शर्मा ने विप्र फाउंडेशन के बैनर तले विप्र महाकुंभ का आयोजन करने वाले अनुराग शर्मा ,गोपाल शर्मा के सन्गठन छोड़कर चले जाने पर सवाल उठाए और कहा कि ये लोग सन्गठन छोड़कर चले गए या इन्हें छोड़ जाने के लिए विवश किया गया?उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों पूर्व विप्र फाउंडेशन के द्वारा जयपुर की पँचमेढा गौशाला में गौसेवा के लिए पुण्य सम्वर्द्धन कार्यक्रम की घोषणा की थी जिसके अंतर्गत गौशाला की 5000 गायों के लिए 5000 रुपये प्रति गाय के हिसाब खर्च किए जाने थे जिसके लिए चंदा भी इकठ्ठा किया गया था उस कार्यक्रम का क्या हुआ ?क्या गौशाला को कोई फण्ड दिया गया? उन्होंने कहा फाउंडेशन का यह कार्यक्रम भी कागजो में ही सिमटकर रह गया है ।फाउंडेशन द्वारा घोषणा करके समाज के धनाढ्य वर्ग से चंदा इकठ्ठा करने का कार्य किया जाता है।”
सुनील शर्मा के विप्र फाउंडेशन के ऊपर लगाए गए इन सभी आरोपो पर जब रीडर टाइम्स प्रतिनिधि ने विप्र फाउंडेशन के संस्थापक संयोजक से संपर्क करने की कई बार कोशिश की थी उन्होंने फोन कॉल को रिसीव नही किया न ही कोई उत्तर दिया इसके बाद जब रीडर टाइम्स प्रतिनिधि द्वारा फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्य्क्ष महावीर प्रसाद सोती से जानकारी लेने का कई बार प्रयास किया तो कई बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक बार उन्होंने कॉल रिसीव किया ।इस दौरान जरुरतमंद लोगो की सहायतार्थ संस्था का फंड समर्पित करने की सुनील शर्मा की मांग पर उनका दमन करने व संस्था के फेसबुक पेज व ग्रुप से ब्लॉक करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि “सुनील शर्मा की यह मांग जायज नही है व फाउंडेशन के पास अभी इतना फंड नही है कि वह यह कार्य कर सके ।सुनील शर्मा को इस बारे में पत्र भेजा जा चुका है हालांकि वे यह नही बता पाए कि सुनील शर्मा को फाउंडेशन के फेसबुक पेज से व ग्रुप से क्यों ब्लॉक किया गया इसके अलावा पँचमेढा गौशाला की गायों के लिए फाउंडेशन के पुण्य संवर्धन कार्यक्रम के तहत 5000 गायों के लिए 5000 प्रति गाय खर्च करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम वर्ष 2011-12 का था तथा इसके तहत फाउंडेशन के संरक्षक बनवारी लाल सोती द्वारा गौशाला निर्माण के लिए 25 लाख रुपये दिए जा चुके है हमारे पास एक एक रूपये का हिसाब है “परन्तु राष्ट्रीय अध्यक्ष महावीर प्रसाद ने यह नही बताया कि फाउंडेशन के संस्थापक संयोजक सुशील ओझा द्वारा प्रति गाय रुपये 5000 खर्च किये जाने की घोषणा का क्या हुआ?सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बनवारी लाल सोती सोती चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष है व विप्र फाउंडेशन के संरक्षक के पद पर भी है जिन्होंने पँचमेढा गौशाला निर्माण के लिए अपने सोती चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से 25 लाख रुपये दिए थे ।अब सवाल यह उठता है कि क्या विप्र फाउंडेशन ने इस कार्यक्रम को भी अपना बताकर इससे लाभ लेने का प्रयास किया है?क्या विप्र फाउंडेशन कार्यक्रम की कागजो में ही घोषणा करता है जबकि धरातल पर वह पूरी तरह से लागू नही हो पाता है?