शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
कोरोना काल जैसी वैश्विक महामारी ने बच्चो की मासूम सी दुनिया को बदल दिया हैं। और अब शाम को पार्को व् मॉल्स में बच्चो की जगह शांति का माहौल व् सन्नाटा पसरा हुआ हैं। और शॉपिंग मॉल्स में भी अब बच्चो की जम्पिंग करती हुई शोर की आवाजे अब सुनाई नहीं देती हैं। उनकी वो शैतानिया और मस्ती कही खो सी गयी हैं। बच्चे पार्क ,मॉल्स सब लोग अब अपने ही स्थान पर हैं। बस सभी की ज़िन्दगी बदल सी गयी हैं। और करीब तीन महीने पहले किसी बच्चे ने ये सोचा भी नहीं होगा की ऐसा कुछ संकट आएगा। जो सभी की ज़िन्दगी को बदल कर रख देगा। और इस कोरोना संकट ने बच्चो की आजादी ही नहीं बल्कि उनका बचपन भी छीन लिया हैं। दरसल पिछले महीनो तीन से कोरोना के भय से सभी मासूम बच्चे अपने घरो में कैद हो गए थे। जो की अभी भी वैसे ही स्थिति बनी हुई हैं। जिसके चलते बच्चे अवसाद का शिकार हो रहे हैं। दूसरी और अब ऑनलाइन पढ़ाई का बोझ बच्चो के मानसिक संतुलन को बिगाड़ रहा हैं। जिससे कारण वो डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। जो की उनको मानसिक तनाव दे रहा हैं। और वही मनोचिकित्सकों का कहना है। की , बच्चो का घूमने फिरने व् उनका आउटडोर होना बंद हो गया हैं। और जिससे उनकी स्कूल लाइफ भी बंद पड़ गयी हैं। इससे कारण उनके मानसिक तनाव पर अधिक प्रभाव पड़ रहा हैं। जो उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता हैं। इन्ही सब गतिविधियों है के चलते में इमोशनल और बिहैविअर में बदलाव आ रहा हैं। और डिजिटल पढ़ाई के चलते बच्चो का ज्यादा समय मोबाइल व् कंप्यूटर पर बीत रहा हैं। और इन सब दिक्कतों को दूर करने के लिए बच्चो के टीचर और माता पिता ही सहयोग करते हैं|
काफी काफी घंटे तक जब बच्चे ऑनलाइन क्लास करते हैं | तो उसके थोड़ी देर बाद जब वो अपने मनोरंजन के लिए मोबाइल ,लेपटॉप ,टीवी पर अपना समय देते हैं| तो उसी टाइम माता पिता मना कर देते हैं |तो बच्चो में एग्रेसिव हो जाते हैं। और बहस जैसा माहौल होने लगता हैं। और जब उनकी बात नहीं मानी जाती हैं |तो वो एग्रेसिव हो जाते हैं। जिससे उनके दीमक पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं।
> कोरोना वायरस का डर बच्चो में बढ़ा रहा डिप्रेशन
कोरोना काल में बच्चो का घर से निकलना पर पाबंद लग गया हैं। सोशल गैदरिंग कम हो गयी हैं। और फिर वही कुछ माता पिता अपने बच्चो को कोरोना व पुलिस का डर बता कर डराते हैं |जो कि नहीं करना चाहिए। तो कुछ बच्चे कोरोना कि बाते घर पर सुन, सुन कर ही परेशान रहते हैं। ऐसे बच्चो में डिप्रेशन जैसी स्थति बन जाती हैं।