Home देश देश के दो सौ से अधिक विश्वविघालय में पढ़ाई जाती हैं हिंदी इसकी किरणों से रौशन हैं समाज
देश के दो सौ से अधिक विश्वविघालय में पढ़ाई जाती हैं हिंदी इसकी किरणों से रौशन हैं समाज
Jan 10, 2021
शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। 10 जनवरी को मनाए जाने वाले विश्व हिंदी दिवस पर यह कथन नए अर्थों में भी समीचीन हो जाता है कि हिंदी का दावा अब साहित्यिक परिधि से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित होना है। दुनिया में हिंदी का विकास करने तथा इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा 10 जनवरी 2006 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता और अनुराग पैदा करना, हिंदी के लिए वातावरण तैयार करना एवं हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। अंतत: संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में इसे स्थान दिलाना है।
* परदेस में प्रभावी रहे आप्रवासी
दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदी के बढ़ते कदमों के पीछे आप्रवासी भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है, जिनमें अपनी मातृभूमि, संस्कृति, विचार और सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों से जुड़ने की एक बेचैनी रहती है। विदेशी धरती पर भारतीय तत्वों की परिपूर्ति भाषायी स्तर पर कोई भाषा अकेले कर सकती थी, तो वह हिंदी ही रही है, जो भौगोलिक विस्तार के साथ-साथ बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से भी सबसे ज्यादा थी। यह अनायास नहीं कि विदेश गए भारतीयों ने हिंदी भाषा और साहित्य को भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में अपनाया और उसे बढ़ावा देने का प्रयास किया। आप्रवासी भारतीयों के संपर्क में आए अनेक विदेशियों को भी भारतीय संस्कृति-खास तौर से भारतीय जीवन मूल्यों जैसे वसुधैव कुटुंबकम्, पारिवारिक जुड़ाव, सहिष्णुता के भाव आदि ने खूब प्रभावित किया। हिंदी सिनेमा ने भी इनको खासा आकर्षित किया। पिछले दशकों में व्यापार और राजनीतिक कारण भी एक आधार बना है। भारत-भारतीयता से जुड़ने के क्रम में अनेक विदेशियों ने न सिर्फ हिंदी सीखी, बल्कि अपने-अपने देशों में वे ‘हिंदी के एंबेसडर’ भी बने।
* हिंदी से जुड़े हैं दिल
शुरुआत पड़ोसी देश चीन से। साम्यवादी क्रांति के बाद 1962 और फिर वर्तमान में भले ही चीनी शासकों ने हमारी पीठ में छुरा घोंपा, लेकिन चीन का भारत से गहरा रिश्ता भी रहा है। 20वीं सदी में जहां चीन के केवल एक विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम था, वहीं आज 11 चीनी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। श्रीरामचरितमानस का चीनी भाषा में अनुवाद चीन के प्रोफेसर जिन दिंग हान ने किया है। चीन में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने हिंदी-चीनी मुहावरा कोश भी तैयार किया है। चीनी प्रोफेसर वांग शू ने भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों पर कार्य किया है, तो एक अन्य प्रोफेसर च्यांग चिंग ख्वेई ने चीन में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। सूरदास पर उनका विशेष शोधकार्य है। हिंदी में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार दिया गया है। हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आंसू’ के मर्मज्ञ च्यांग हिंदी में कहानियां भी लिखते हैं। एक अन्य प्रोफेसर यू लोंग यू को ‘भारत अध्ययन’ के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। चीन में हिंदी की लोकप्रियता तो काफी बढ़ी है किंतळ् इन विद्वानों का यह भी मानना है कि भारत-चीन के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों के चलते चीन में हिंदी का सही तरीके से प्रसार नहीं हो पाया।
* मनोरंजन के साथ भाषा ज्ञान
एशियाई देशों में जापान में हिंदी की लौ जलाने वालों में प्रोफेसर ताकाकुसु अग्रगण्य हैं, जिनके प्रयासों से जापानी विश्वविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन शुरू हुआ। टोकियो विश्वविद्यालय में तो एम. फिल. और पीएच. डी. की सुविधा उपलब्ध है। प्रोफेसर हिंदेआकी इशिदा और दोशिकुमी मिजुनो ने अनुवाद कार्य में महती कार्य करते हुए विद्यार्थियों को दक्षता प्राप्त करने में मदद की है। सेत्स सुजुकि नामक एक प्रोफेसर का मानना है कि भारतीय लोक कथाओं की जापानी लोक कथाओं पर गहरी छाप है। छात्रों की सुविधा के लिए टोकियो विश्वविद्यालय में जापानी-हिंदी और हिंदी-जापानी शब्दकोश भी तैयार किए गए हैं। इसके अतिरिक्त इंदो बुंकाकु (भारतीय साहित्य) नामक पत्रिका भी यहां से निकलती है। पिछले सालों में जापान में हिंदी फिल्मों की मांग बढ़ी है। इससे भी जापानी लोगों के बीच हिंदी भाषा सीखने का रुझान बढ़ रहा है। प्रो. मिजोकामी जापानियों को हिंदी सीखने के लिए श्रवण-वाचन पद्धति को उपयोगी समझते हैं और महाभारत व रामायण धारावाहिक और फिल्मों को महत्वपूर्ण मानते हुए इनके माध्यम से हिंदी सिखाते हैं। आज हिंदी भाषा-साहित्य पूरे जापान में लोकप्रिय है। हजारों की संख्या में जापानी छात्र हिंदी अध्ययन करते हैं।