शहादतों को भूलना तो जैसे हमारी आदत सी हो गई है
नई दिल्ली :हमारे यहाँ शहादतों को भूलना हमारी रोजमर्रा की आदत में शामिल हो गया है .यहाँ तक की देश पर जान देने
वालो का नाम जानने की जहमत करना भी हमें गवारा नहीं होता .नजरिया बदलने की जरुरत है
बिहार में मुंगेर – लखीसराय पर दो दिन पहले नक्सलियो से हुई मुठभेड़ में अजय लाल मंडल बिहार स्पेशल टास्क फ़ोर्से के जवान शहीद हो गए .उनकी शहादत ने उनके अधिकारी[SP] को अंदर तक झकझोर गया.उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने जज्बात जाहिर किये जिनको पढ़ कर हर जिम्मेदार शहरी कुछ शर्म तो जरूर आएगी .
उन्होंने अपनी मार्मिक पोस्ट में अपने साथी की मौत पर लिखा की “तुम कितने खास और अनमोल थे लेकिन न जाने क्यू सभी भावनाओ को अपने भीतर रखे रह गए ” उन्होंने लिखा की “आज हमने अपने परिवार का एक जवान खो दिया है अजय लाल मंडल ने नक्सलियो से लड़ते लड़ते अपनी जान गवा दी लेकिन उनको आगे नहीं बढ़ने दिया ,उसकी पत्नी फूट फूट कर रो रही थी वो खड़े खड़े गिर पड़ती थी लेकिन मैं उसको समझा न सका की उसका पति कितना महान था. लेकिन अफ़सोस है की कुछ दिनों बाद इसकी शहादत को ठीक उसी तरह भुला दिया जायेगा जैसे बाकी शहीदों को भुला दिया गया है
ये सही है की मरने में किसी का साथ नहीं दिया जा सकता लेकिन शहीदों की शहादत को नार्मली कैसे लिया जा सकता है .उनकी शहादत पर उनके परिवारजनों के अलावा कोई क्यू नहीं रोता,क्युकि जान तो उसने समाज के लिए दी है न की समाज के लिए ………
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