आशुतोष कुमार/रीडर टाइम्स
वैदिक ज्योतिष के अनुसार हर रत्न का सम्बन्ध किसी न किसी ग्रह से है, जैसे सूर्य का सम्बन्ध माणिक्य रत्न से, चन्द्र का मोती से, बुध का पन्ने से, गुरु का पुखराज से शुक्र का हीरे से, शनि का नीलं से, राहू का गोमेद से और केतु का लह्सुनिये से। इस प्रकार हमारे नौ ग्रहों का सम्बन्ध नौ रत्नों से है।
ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का बेहद महत्व है। ये ऐसी वस्तु है जिन्हें काफी शक्तिशाली माना गया है। ज्योतिष विधा का यह दावा है कि ये रत्न बड़ी से बड़ी परेशानी को अपने प्रभाव से खत्म करने की क्षमता रखते हैं।
रत्नों की दुनिया वाकई जादुई-सी लगती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न में करिश्माई शक्तियां होती हैं। रत्न अगर सही समय में और ग्रहों की सही स्थिति को देखकर धारण किए जाएं, तो इनका सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है अन्यथा रत्न विपरीत प्रभाव भी देते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कई प्रकार के रत्न होते हैं। हर रत्न किसी विशेष परेशानी या किसी खास मकसद से ही धारण किया जाता है। यह बत गौरतलब है कि हर रत्न को धारण करने से पहले किसी ज्ञानी ज्योतिषी की राय ले लेनी चाहिए।
अन्यथा गलत रत्न धारण करना बड़ी मुसीबत ला सकता है। एक बात और, रत्न हर कोई नहीं पहन सकता। जिसके लिए जो रत्न बना है, वही पहनना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न जातक की कुंडली का विवेचन करने के पश्चात ही धारण किया जाना चाहिए।
बिना ज्योतिषी राय के रत्न धारण करना जातक की किसी विशेष क्षेत्र की या फिर उसके लिए पूर्ण बर्बादी का कारण बन सकता है। कुछ कुंडलियां ऐसी भी होती हैं जिनमें रत्न धारण करने जैसा कोई भी योग नहीं होता। तो ऐसे में इस तरह के जातक को जीवन भर किसी भी प्रकार का रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र की एक विशेष विधा ‘लाल किताब’ में भी रत्नों का महत्व समझाया गया है, जिसके अनुसार रत्नों में ग्रहों की उर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है। रत्नों में विराजमान अलौकि गुणों के कारण रत्नों को ग्रहों का अंश भी माना जाता है।
लाल किताब के अनुसार रत्नों में मंदे, कमज़ोर एवं सोये हुए ग्रहों को नेक, बलशाली, एवं जगाने की क्षमता होती है। लेकिन जब तक सही ज्योतिषी सलाह ना मिले, रत्न धारण करने का कोई लाभ नहीं है।
रत्नों के अलावा ज्योतिष शास्त्र में ‘धातु’ का भी काफी महत्व है। विभिन्न परेशानियों का समाधान करने के लिए ज्योतिषी विशेष धातु पहनने की भी सलाह देते हैं। जैसे कि गुस्सा शांत करने के लिए चांदी की वस्तु पहनने को कहा जाता है। शनि साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रकोप से बचने के लिए घोड़े की नाल या लोहे का छल्ला पहनने की सलाह दी जाती है।
इन सभी धातुओं का भी अपना असर होता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि जब ये धातु किसी खास रत्न के साथ मिला दी जाए, तो इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। यही कारण है कि रत्न को किसी विशेष धातु से बनी अंगूठी में ही धारण करने की सलाह दी जाती है।
लेकिन किस रत्न के लिए कौन से धातु का प्रयोग करना अनिवार्य है, यह भी जानने योग्य बात है। क्योंकि जातक की कुंडली किस ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करना चाहती है, और पहनी हुई धातु उसके लिए काम आएगी या नहीं, यह देख-परख कर ही रत्न को धारण करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक रत्न किसी खास धातु के लिए ही बना है। यदि किसी रत्न को गलत धातु में बनवा लिया जाए, तो या तो उसका असर नहीं होता या फिर कई बार वह गलत प्रभाव भी छोड़ जाता है।
तो यहां हम सबसे पहले आपको यह बताने जा रहे हैं, कि यदि आपको किसी ज्योतिषी ने विशेष रत्न धारण करने की सलाह दी है, तो उस रत्न को आपको किस धातु बनवाना चाहिए और किसमें नहीं।
ये नियम जानना बेहद जरूरी है। अमूमन हर रत्न किसी विशेष धातु के लिए ही बना है। उसके अलावा उसे अन्य धातु में नहीं बनवाना चाहिए। लेकिन यदि कोई बदलाव हो तो वह जातक की कुंडली के आधार पर ही किया जाता है।
उदाहरण के लिए कुछ लोगों के लिए ‘चांदी धातु’ शुभ नहीं होती। इसलिए उन्हें यह धारण नहीं करनी चाहिए। ऐसे में यदि उन्हें इसी धातु में पहना गया रत्न धारण करना पड़े, तो उन्हें किसी अन्य विकल्प की तलाश करनी पड़ती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि यदि कोई ‘रूबी’ रत्न धारण करने जा रहा है, तो इसे तांबा या सोना, इन धातुओं के प्रयोग से ही बनवाएं और धारण करें। पन्ना रत्न के लिए सोना अनुकूल धातु है।
इसके बाद मोती धारण कर रहे हैं तो इसे हमेशा चांदी में ही पहनें, मोती को कभी सोने में नहीं पहनना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति नीलम धारण कर रहा है तो उसे सोने या प्लैटिनम में बनवाएं।
पुखराज और मूंगा रत्न भी सोने में ही बनवाकर धारण किया जाता है। मूंगा रत्न को यदि सोने में ना बनवा सके, तो जातक उसे तांबे में भी बनवाकर पहन सकता है। ओपल रत्न को चांदी में पहना जाता है। गोमेद और लहसुनिया को अष्टधातु या त्रिलोह में बनवाकर पहनें।
यूं तो रत्न ज्योतिषीय राय पर ही पहना जाता है और अक्सर जब लोगों को कोई परेशानी महसूस होती है या किसी चीज की चाहत होती है तो उसे पाने के लिए वे रत्नों का सहारा लेते हैं। लेकिन इसके अलावा एक अन्य तरीके से भी रत्न धारण किए जा सकते हैं और वह है राशि अनुसार रत्न धारण करने का माध्यम।
जी हां… मेष राशि से लेकर मीन राशि तक, हर राशि चिह्न के लिए एक विशेष रत्न बना होता है। यह रत्न उन्हें लाभ ही देता है। लेकिन किस क्षेत्र में यह उस राशि के स्वामी ग्रह के साथ रत्न का कैसा संबंध है, इस बात पर निर्भर करता है।