रिपोर्ट शरद द्विवेदी
रीडर टाइम्स न्यूज़
: – हाई कोर्ट के दखल के बाद जांच हुई शुरू
शायद ही भ्रष्टाचार का कोई ऐसा प्रकरण हो जिस पर हरदोई की ब्यूरोक्रेसी ने कार्यवाही की हो।कार्यवाही न होने के प्रमुख दो ही कारण रहे है एक तो भ्रष्टाचार को सत्ता का संरक्षण दूसरा ज्यादातर भ्रष्टाचार में ब्यूरोक्रेसी की संलिप्तता। बावन ब्लाक की ग्राम पंचायत निजामपुर इन दिनों विशेष रूप से अपने भ्रष्टाचार के कारण सुर्खियों में है शिकायतकर्ता सतीस कुमार ने जुलाई/2020 में एक शिकायत पत्र जिलाधिकारी पुलकित खरे को सौंपा था जिसमे आरोप था कि ग्रामप्रधान ने मृतक ब्यक्ति व अपने सगे संबंधीयो को मनरेगा का मजदूर दिखा कर लाखो रुपये सरकारी धन को हड़पा है व विकास कार्यो में सरकार द्वारा आवंटित धन का दुरूपयोग किया गया है। चुकी ग्रामप्रधान कद्दावर नेता का बेहद ही करीबी है इस कारण सत्ता के दवाब में कार्यवाही नही हो सकी थी अन्तोगत्वा शिकायतकर्ता उच्च न्यायालय की शरण मे चला गया तत्पश्चात जब हाई कोर्ट ने दखल किया तब हरदोई ब्यूरोक्रेसी के हाथ पांव फूल गए और तुरन्त डी0 सी0 मनरेगा कल निजामपुर ग्राम जा पहुचे।और आपको जान कर ताज्जुब होगा कि डी0 सी0 मनरेगा के आगे उनलोगों ने मनरेगा में कार्य करना स्वीकार किया जो आलीशान कोठियों व गाड़ियों के मालिक है।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार डीसी मनरेगा ने आठ दिन का समय देते हुए दस्ताबेज मांगे है शिकायतकर्ता ने बताया कि सारा खेल सिकरेट्री के साथ मिल कर खेला गया है। प्रकरण से एक बात तो साफ है कि अगर उच्च न्यायालय का दखल न होता तो शायद शिकायतकर्ता सतीस कुमार की शिकायत को फर्जी आख्या लगा कर बन्द कर दिया गया होता और पूर्व में फर्जी आख्या का भी खेल जमकर खेला गया।लेकिन शिकायतकर्ता ने हार नही मानी और उच्च न्यायालय की शरण मे चला गया लेकिन अब प्रतीत होता है कि आज नही तो कल निश्चित ही निजामपुर में जो भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे है उनकी निष्पक्ष जांच होगी और भ्रष्चारियो पर कार्यवाही होगी।लेकिन जिस प्रकार से उच्च न्यायालय के दखल के बाद हरदोई की ब्यूरोक्रेसी जागी है उससे हरदोई की ब्यूरोक्रेसी पर सवाल उठना लाजमी है और शायद अगर शिकायतकर्ता उच्च न्यायालय की शरण मे न जाता तो हरदोई की ब्योरोक्रेसी निजामपुर के भ्रष्चारियो पर कार्यवाही न करती।