रिपोर्ट शरद द्विवेदी
रीडर टाइम्स न्यूज़
एक कहावत है चोर चाहे कितना ही शातिर क्यो न हो एक न एक दिन कानून के शिकंजे में फस ही जाता है। यही हाल सजीव अग्रवाल के साथ हुआ है इस शातिर दिमाक वाले जालसाज ने बहुत अच्छी तरीके से एक रणनीति के तहत ज्ञानयीग धर्मार्थ ट्रस्ट की जमीन को हड़प लिया था। लेकिन पकड़ा गया और जब से प्रकरण का खुलासा हुआ तो परत दर परत इसका साथ देने वाले अधिकारी फंसते जा रहे है पता नही यह जालसाज कितनो को ले डूबेगा।
दरअसल जब अवैध मारुति शोरूम का प्रकरण उच्च न्यायालय की शरण मे गया और जांच के आदेस हुए तो उस पुनर्ग्रहण पत्रावली की तलाश की गई जिस पुनर्ग्रहण आदेश के अंतर्गत ज्ञान योग धर्मार्थ ट्रस्ट को सरकारी भूमि आवंटित की गई थी। लेकिन पत्रावली भूलेख कार्यालय से गायब मिली और ग़ायब पत्रावली की जांच की गई तो तत्कालीन एल0 आर0 सी0 वारिस अली और पैरबी लिपिक जगदीश चन्द्र दोषी पाए गए जिस संबंध में सचिन मिश्रा की तहरीर पर दोषियों पर धारा 409 के अंतर्गत कोतवाली शहर में मुकदमा पंजीकृत किया गया है।
इस प्रकरण से समझा जा सकता है कि किस प्रकार इस पूरे भ्रष्टाचार में हरदोई की ब्यूरोक्रेसी शामिल थी और पता नही कितनो को यह जालसाज संजीव अग्रवाल अपने साथ डुबो ले जाएगा हालांकि दी गई तहरीर में यह कही भी उल्लेख नही है कि पत्रावली गायब कराने में संजीव अग्रवाल का हाथ है लेकिन जिस प्रकार से अभी तक के प्रकरण में उच्च स्तरीय अधिकारियों की संलिप्तता रही है उसको देखते हुए पत्रावली के गायब होने में संजीव अग्रवाल की भूमिका है से इंकार नही किया जा सकता है।