Home देश युवा आबादी का नहीं उठाया गया लाभ , चुकानी पड़ सकती है बड़ी कीमत
युवा आबादी का नहीं उठाया गया लाभ , चुकानी पड़ सकती है बड़ी कीमत
Jul 19, 2021
डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
देश की विशाल आबादी लंबे समय से सवालों के घेरे में है। कई लोग जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानूनी कदम जरूरी मानते हैं। फिलहाल नियंत्रण जितना ही जरूरी है, जनसंख्या का नियोजन। हमारी बड़ी आबादी युवा है। दुनियाभर में आटोमेशन के रूप में सामने आ रही चुनौती के बीच युवाओं को विकास का वाहक बनाने की जरूरत है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी में चौथाई हिस्सा 10 से 19 साल की उम्र के लोगों का है। यह बड़ी युवा आबादी आर्थिक विकास में योगदान देने में सक्षम है।
दुनिया आटोमेशन की ओर बढ़ रही…
आबादी की बेहतरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल पर किया गया खर्च देश को कई तरह से लाभ पहुंचा सकता है। जिस तरह से दुनिया आटोमेशन की ओर बढ़ रही है, उसे देखते हुए इस दिशा में कदम उठाना और भी जरूरी हो गया है। किशोरों के स्वास्थ्य एवं कल्याण पर खर्च बढ़ाकर तीन स्तर पर लाभ लिया जा सकता है। पहला लाभ तत्काल मिलेगा, दूसरा लाभ भविष्य में स्वस्थ वयस्क आबादी के रूप में और तीसरा लाभ स्वस्थ अगली पीढ़ी के रूप में मिलेगा। इसी तरह शिक्षा पर किया गया खर्च भी कई गुना होकर समाज को लाभ पहुंचाता है।
आबादी का सही नियोजन करें…
मौजूदा हालात में जनसंख्या नियंत्रण जितना ही जरूरी जनसंख्या नियोजन है। वैसे भी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में आबादी बढ़ने की दर पहले के अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से कम हुई है। ऐसे में हमारे पास अपनी जनसांख्यिकी का लाभ लेने का समय कम होता जा रहा है। नीतियों को जल्द से जल्द इस दिशा में मोड़ना होगा , ताकि अपनी युवा आबादी का भरपूर लाभ भारत को मिल सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी जरूरी है कि हम अपनी आबादी का सही नियोजन करें।
ये आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले…
कोरोना के कारण पिछले 18 महीने में करोड़ों छात्र प्रभावित हुए हैं। स्कूल-कालेजों के बंद रहने से बच्चों के जीवन और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। कोरोना काल में डिजिटल डिवाइस तक पहुंच नहीं होने के कारण कई बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए। गैर लाभकारी संगठन प्रथम की ओर से जारी एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) वेव-1 में सामने आया कि सरकारी स्कूलों के करीब 43.5 फीसद और निजी स्कूलों के करीब 26 फीसद बच्चों की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं है। नौंवी या इससे ऊपर की कक्षा में सरकारी स्कूलों के करीब 35 फीसद और निजी स्कूलों के 43 फीसद छात्रों को ही वाट्सएप, फोन काल, वीडियो या आनलाइन क्लास के माध्यम से लर्निग मैटेरियल मिल पाया। ये आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। जहां एक ओर दुनिया तेजी से टेक्नोलाजी और आटोमेशन की ओर बढ़ रही, तो दूसरी ओर लाखों बच्चों का पढ़ाई से दूर रहना चुनौती है।
नई शिक्षा नीति के अमल से मिलेगा लाभ…
कौशल विकास और वोकेशनल ट्रेनिंग को मौजूदा और भविष्य की अर्थव्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए। इन कार्यक्रमों को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि युवा भारत को सक्षम बनाया जा सके। युवाओं को जो ज्ञान दिया जाए , वह सामयिक हो और उन्हें ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में टेक्नोलाजी क्रांति को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाए। डिजिटल इंडिया जैसे मौजूदा कार्यक्रमों के जरिये सरकार क्षमता निर्माण कर सकती है और युवा आबादी को लक्षित करते हुए विशेष पहल कर सकती है।
कोरोना काल में एक करोड़ लड़कियों की पढ़ाई बाधित होने का अनुमान…
इस दिशा में शिक्षा बजट पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। चालू वित्त वर्ष में शिक्षा बजट 93,224 करोड़ रुपये तय किया गया है, जो पिछले साल 99,300 करोड़ रुपये था। ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के लिए भी विशेष प्रविधान नहीं किया गया है। निसंदेह यह चिंता बढ़ाने वाली बात है। भारत में 18 से 24 साल की 48 फीसद लड़कियां रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण से जुड़ी नहीं हैं। सामाजिक प्रथाएं इस दिशा में बाधक बनती हैं। इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कोरोना काल में करीब एक करोड़ लड़कियों की पढ़ाई बाधित होने का अनुमान है।
व्यवस्थागत खामियों को भी दूर करने की जरूरत…
जनसंख्या नियोजन के लिहाज से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और नेशनल अप्रेंटिसशिप स्कीम जैसी योजनाएं अच्छा प्रयास हैं। व्यवस्थागत खामियों को भी दूर करने की जरूरत है। प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर के बीच संबंध स्थापित करना होगा, ताकि रोजगार कर रहे लोगों का प्रतिशत बढ़े। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में भी लगातार प्रयास करने की जरूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि युवाओं को आत्मविश्वास और कौशल से परिपूर्ण करने के बहुत से लाभ हैं। साथ ही इसमें चूकने से भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।