भरी सभा में हुआ प्रकाण्ड विद्वान ब्राह्मण रावण का बड़ा अपमान


संवाददाता श्याम जी गुप्ता
रीडर टाइम्स न्यूज़
शाहाबाद / भरी सभा में प्रकाण्ड विद्वान रावण का बड़ा भारी अपमान हुआ जबकि लंका से चलते समय पटरानी मंदोदरी ने उसे ऐसे समझाया कि मंदोदरि वहुविधि समुझाई। अभिमानी रावण न सोहाई। अहंकार से ओतप्रोत रावण अपनी पटरानी की बात को नहीं माना और अपमानित हुआ।

रामलीला मेला समिति के संरक्षक डॉ मुरारी लाल गुप्ता के द्वारा भगवान राम की आरती के साथ रामलीला मेला पठकाना में वृंदावन की पार्टी द्वारा धनुष यज्ञ, रावण बाणासुर संवाद व परशुराम लक्ष्मण संवाद की लीला का सुंदर मनमोहक मंचन हुआ। जिसे देख दर्शक भाव विभोर हो गए। बताते चलें कि श्री रामलीला मेला मोहल्ला पठकाना में बीती रात फिर वही हुआ जिसका भय था। यानी राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह हेतु परम्परागत रूप से स्वयंवर रच दिया। जिसमें पृथ्वी लोक के लगभग सभी राजा महाराजा न्योता दिया। देखते ही देखते बड़े बड़े वीर बाणासुर रावण राम लक्ष्मण सहित मुनि विश्वामित्र आदि उल्टे सीधे टेढ़े मेढ़े तमाम तीरन्दाज राजा महाराजा योद्धा जनकपुरी में आकर अपने अपने लिए सुव्यवस्थित आसन पर आसीन हो गए। और अपनी अपनी मूंछों पर बड़ी बेसब्री से ताव देने लगे। उन्हें देखकर ऐसा परिलक्षित हो रहा था। जैसे उनके सामने स्वयंवर में रखा शिव धनुष क्या चीज है।

जब वह पेड़ उखाड़ कर आसमान में घुमाकर फेंक देने बाले और पहाड़ को पकड़कर मुट्ठी में मसल देने बाले विश्व विख्यात या फिर विश्वविजेता योद्धा हैं। इन्हीं योद्धाओं में एक अपने जमाने का अत्यंत प्रलयंकारी योद्धा ही नहीं अपितु शिव का अनन्य भक्त रावण भी पूरी सभा में अपनी सूरत दिखाने मात्र से ही बड़ा भयानक रणरणक मचाए था। सभा मध्य उपस्थित एक से बड़े एक दिग्गज राजा महाराजा बार बार ईर्ष्या द्वेषबश लंका के राजा रावण को देखकर भयाक्रांत हो रहे थे और अन्दर ही अन्दर चिन्तातुर इस बात से थे कि उनके भाग्य में सीता कैसे आ सकती हैं क्योंकि जब तक उनका नम्बर आएगा। तब तक उनसे बड़ा बाला कोई राजा धनुष तोड़ देगा। तभी दौड़कर सीता उसके गले में जयमाला डाल देंगी। सभा मध्य उपस्थित सभी राजागण इसी उधेड़बुन में जले भुने जा रहे थे कि एकाएक धनुष यज्ञ की घोषणा होते ही राजाओं महाराजाओं के बाजू फड़कने लगे। लेकिन कोई राजा महाराजा धनुष तक पहुंच पाता कि उससे पहले राजा रावण ने सबको डपट दिया। और स्वयं अहंकार स्वरूप धनुष उठाने के लिए आगे बढ़ गया।

लेकिन काफी जोर आजमाइश के बाद भी जब बेचारा धनुष को हिला तक नहीं सका तो भरी सभा में अपमानित होकर आखिर अपना सा मुँह लिए उल्टे पैरों लौट गया। उसके जाने के बाद सभी उपस्थित राजाओं महाराजाओं ने बारी-बारी से अपनेे-अपने बाजुओं की ताकत आजमाई  लेकिन सब के सब असफल रहे के लिए जोर आजमाइश लेकिन सब के सबके असफलता ही अंततः हाथ आई। हालांकि अयोध्याा के राजकुमार दशरथ नंदन राम सहित लक्ष्मण यथास्थान मुनि विश्वामित्र के साथ शान्त चित्त आसीन थे। अंततः राम ने मुनि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर शिव धनुष को प्रणाम किया और उसे उठा कर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाई की धनुष टूट गया। शिव धनुष के टूटते ही महान शिव भक्त विश्व विख्यात परशुराम बड़े वेग से घर धमके कि धरती हिलने लगी और आसमान कांपने लगा। राजा गण थरथराने एवं खिसकने लगे। तभी टूटे हुए धनुष को देखते ही परशुराम इतने अधिक क्रोधातुर हो गए कि उनके क्रोध को सामने राजा जनक सहित सीता तथा मुनि विश्वामित्र भी चिंतित हो गए।

मौके पर राम की स्वीकारोक्ति के तदनन्तर अत्यंत तीखा परशुराम लक्ष्मण संवाद हुआ। परंतु भगवान राम की वाकपटुता एवं व्यवहार कुशलता तथा सांस्कतिक प्रव्रत्ति के चलते सबकुछ सकुशल सम्पन्न हो गया। तथा सीता स्वयंवर समापन के साथ ही सभा विसर्जन और धनुष यज्ञ संपन्नता से श्री रामलीला समिति सहित समस्त दर्शकगण प्रसन्नचित अपने अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर गए। साथ ही साथ रामलीला में काफी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मेला अध्यक्ष संजय मिश्रा , महामंत्री मधुप मिश्रा , मन्त्री ऋषि मिश्रा , आशीष मोहन तिवारी , विशेष सहयोगी योगेश अरोड़ा , विशेष सेवादार पुष्पेन्द्र मिश्रा आदि की सराहना करते गए।