गिरीश पांडेय
रीडर टाइम्स न्यूज़
मेडिकल इमरजेंसी / आम आदमी के लिए सबसे बड़ी आफत होती है। अक्सर ऐसी इमरजेंसी में दूर-दराज के केंद्र पर इलाज के दौरान उसका समय और संसाधन बर्बाद होता है। कभी-कभी तो खेत और घर का गहना बेचने या बंधक रखना पड़ता है। सड़क हादसे, दिल के दौरे, ब्रेन हैमरेज, किडनी के रोग जैसे मामलों में तो वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता। ऐसे कई रोगों में इलाज का एक “गोल्डेन पीरियड” (तय समय) होता है। इस दौरान इलाज मिलने से संबंधित व्यक्ति की जान बच सकती है या रोग को और गंभीर होने से बचाया जा सकता है। ऐसा तभी संभव है जब पास में विशेषज्ञों द्वारा सस्ता और आधुनिक इलाज की सुविधा हो।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर स्थित जिस गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं उसका शुरू से यह सपना रहा है कि आम आदमी को पास में ही इलाज की सस्ती एवं आधुनिक सुविधा प्राप्त हो। उनके गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के समय में इसी मंशा से मंदिर परिसर में गुरु गोरक्षनाथ चिकित्सालय की स्थापना की गई। इस अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सकों की सुविधा दूरदराज के गांवों में भी मिले, इसके लिए ब्लॉक स्तर पर जांच, इलाज और दवा वितरण के लिए निःशुल्क कैंप आयोजित किए जाते हैं।
गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज की बेहतरी, पूर्वांचल के मासूमों के लिए करीब चार दशकों से काल बनी इंसेफेलाइटिस के टीककरण, इलाज एवं इसकी जांच के लिए इंडियन वायरोजाकिल सेंटर, पुणे से संबद्ध रीजनल सेंटर की स्थापना तथा गोरखपुर में एम्स के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष उनकी स्वास्थ्य के क्षेत्र में रुचि का प्रमाण है। उसे विस्तार देते हुए योगी की पहल से गुरु गोरखनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल यूनिवर्सिटी के नाम से गोरखपुर को हाल ही निजी क्षेत्र के पहले कॉलेज की सौगात मिली। इसका लोकर्पण राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया था।
बतौर मुख्यमंत्री हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लक्ष्य के साथ वह व्यापक फलक पर अपने सपने को विस्तार दे रहे हैं। इसी क्रम में 25 अक्टूबर को प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक नया रिकॉर्ड बना। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली सिद्धार्थनगर से उत्तर प्रदेश को एक साथ 9 जिलों (देवरिया, एटा, हरदोई, गाजीपुर, मीरजापुर, प्रतापगढ़ , जौनपुर, फतेहपुर) को मेडिकल कॉलेज का सौगात दिया। इसके साथ ही ऐसा करने वाला उत्तरप्रदेश देश का इकलौता राज्य बन गया।
“नव सृजित हर कॉलेज में एमबीबीएस की 100-100 सीटें होंगी। कुशीनगर के मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास 20 अक्टूबर को प्रधानमंत्री कर चुके हैं, बहराइच के मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस का दूसरा सत्र चल रहा है। गोरखपुर एम्स का लोकार्पण भी दिसम्बर में प्रधानमंत्री के हाथों प्रस्तावित है।”
प्रदेश में बनने वाला हर मेडिकल कॉलेज अपने नामकरण की वजह से प्रदेश और देश के गौरवशाली अतीत का भी याद दिलाता रहेगा। मसलन देवरिया के मेडिकल कॉलेज का नाम महर्षि देवरहा बाबा के नाम होगा। इसी तरह गाजीपुर का महर्षि विश्वामित्र, सिद्धार्थनगर का जनसंघ के संस्थापक सदस्य व उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रथम अध्यक्ष पंडित माधव प्रसाद त्रिपाठी, मीरजापुर मां विंध्यवासिनी, बस्ती महर्षि वशिष्ठ, अयोध्या राजर्षि दशरथ, बहराइच राजा सुहेलदेव, एटा वीरांगना अवंतीबाई लोधी, फतेहपुर अमर शहीद जोधा सिंह अटैया ठाकुर दरियांव सिंह, चैंदौली बाबा कीनाराम, बिजनौर महात्मा विदुर, प्रतापगढ़ डॉ सोनेलाल पटेल और जौनपुर के मेडिकल कॉलेज का नाम पूर्व मंत्री उमानाथ सिंह के नाम से होगा। इनमें से चार मेडिकल कॉलेजों सिद्धार्थनगर, चैंदौली, फतेहपुर और बिजनौर के नाम पर 20 अक्टूबर को सरकारी मुहर भी लग गई।
निःसंदेह शिक्षा व स्वास्थ्य ही किसी देश और राज्य के विकास के असली मानक होते हैं। इनकी बुनियाद पर ही कोई देश सशक्त और हर क्षेत्र में श्रेष्ठतम बनता है। शिक्षा में प्राइमरी शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है। प्राथमिक विद्यालय में जाने वाला बच्चा कच्चे घड़े जैसा होता है। वहां उसे जिस तरह की शिक्षा एवं संस्कार मिलते हैं उसी के अनुरूप उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में कमाल का काम हुआ। कायाकल्प अभियान के जरिए आज प्रदेश के कई प्राइमरी स्कूल स्थानीय कान्वेंट स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं। कहीं-कहीं तो मात भी।
अब ऐसा ही कमाल योगी सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में कर रही है। कमाल इसलिए क्योंकि आजादी के बाद के 70 वर्षों में सबसे बड़ी आबादी और अपेक्षाकृत कम संसाधनों वाले इस राज्य में सिर्फ 12 सरकारी मेडिकल कॉलेज थे। मार्च 2017 में योगी के सत्ता संभालने के बाद इनमें द्रुत गति से 32 का इजाफा हुआ है। इनमें से कई में तो एमबीबीएस का पठन-पाठन भी शुरू हो गया है। अब राज्य में 59 जिले ऐसे हैं जहां मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं, बनकर तैयार हैं या वहां स्वीकृति मिल चुकी है। बाकी 16 जिलों में इनका निर्माण पीपीपी (प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप) मॉडल पर होगा। साथ ही राज्य के जिन प्रमुख शहरों मसलन गोरखपुर, वाराणसी, आगरा, नोएडा और कानपुर आदि की सीमाएं दूसरे राज्यों से लगीं हैं, उनमें पीपीपी मॉडल पर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल बनेंगे। दिसंबर में मुंबई की अपनी यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री ने देश के दिग्गज उद्योगपतियों से इस पर चर्चा की थी। उस दौरान उनमें से कई ने इसमें रुचि भी दिखाई थी।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण कर उन्होंने साबित किया कि बेहतर और आधुनिक चिकित्सा हर नागरिक का अधिकार है। उनकी पहल का नतीजा भी दिखा। महज साढ़े चार साल के कार्यकाल में इंसेफेलाइटिस से प्रभावित होने वाले मरीजों की संख्या में 75 फीसद और इससे होने वाली मौतों में 95 फीसद की कमी आई।
हर जिले को मेडिकल कॉलेज से आच्छादित करने की नीति को अमली जामा पहनाने में जुटी योगी सरकार अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच दूरदराज के क्षेत्रों में भी आसान बनाने में लगी है। इसी मंशा के अनुरूप प्रदेश में 3000 से अधिक सीएचसी-पीएचसी पर हेल्थ एटीएम स्थापित करने की कार्ययोजना तैयार की गई है। इस अभिनव पहल के लिए फंड का इंतजाम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत किया जाएगा, इसमें रोटरी क्लब जैसी सामाजिक संस्थाओं की भी मदद ली जाएगी। हेल्थ एटीएम के जरिये ब्लड प्रेशर, हर्ट बीट, ऑक्सिजन लेवल, खून की सामान्य जांच जैसी सुविधाएं सुदूर गांव के लोगों को आसानी से उपलब्ध होंगी। इन हेल्थ एटीएम से जुड़े डॉक्टर जांच रिपोर्ट देखकर इलाज भी सुनिश्चित करेंगे। यही नहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना में जो पात्र लोग किन्हीं कारणों से कवर नहीं हो पाए, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी भी सुधि ली है। ऐसे लोगों के लिए प्रदेश में मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना शुरू की गई है।
गिरीश पांडेय …