बिना विराग के सुमिरन नहीं संभव

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
हर व्यक्ति को अगर भगवान की भक्ति में विलीन होना हैं तो एकांत मन से गहरी साधना करनी होगी। उस भक्ति में बिलकुल विलीन हो जाना हैं। जरुरी नहीं की भक्ति का दिखावा करना चाहिए। जीवन के सभी दोषो को दूर तभी दूर किया जाता हैं। जब व्यक्ति ईश्वर में ध्यानमग्न हो जाता हैं। धीरे – धीरे जीवन के सभी दोष दूर हो जाते हैं। मन को निर्मल करना पड़ेगा , फिर सुमिरन का चमत्कार तुम देखोगे। मन में सुमिरन का अमृतरस बरसेगा और मन उसमें सराबोर हो जाएगा।

“इस सुमिरन की अवस्था में पहुंचना तब तक सम्भव नहीं है , जब तक मन में वैराग्य नहीं। जब तक साधना में बैठने की रुचि न हो , जिस मन में प्रभु का सुमिरन घटित होता है, जिसके मन में ऐसी इच्छाएं भरी हुई हैं , वह ऐसे इच्छा से भरे मन के साथ फिर जन्म लेगा। “

बहुत लोग कहते हैं कि इस पूरी धरती पर ही कोई साधु नहीं है। हम अपने आप ही पाठ कर लेंगे, अपने आप जप कर लेंगे। हम किसी साधु की संगत में क्यों जाएं? सच तो यह है कि तुम्हारा अहंकार मानना ही नहीं चाहता है कि कोई साधु है। तुम्हारा अहंकार किसी को अपने से बड़ा और श्रेष्ठ स्वीकार करना ही नहीं चाहता। साधु की निंदा करना बहुत बड़ा अपराध है। साधु के संग में ही सुमिरन घटित हो सकता है। जिसको सत्संग ही नहीं मिला, साधु संग ही नहीं मिला, उसका मन निर्मल हो जाना असम्भव है।

साधु का संग करने से सुमिरन घटित हो सकता है। जिसके अंदर सुमिरन घटित हो जाए, उसे सब खजाने मिल सकते हैं। परमात्मा के दर पर वही लोग स्वीकृत होते हैं, जिन्होंने इस अमृत को पीया है। जो इस सुमिरन रूपी अमृत को पी लेगा, वही परमात्मा के द्वार तक पहुंचेगा और उस प्यारे का दर्शन भी करेगा। सच तो यह है कि जिसने सुमिरन का अमृतरस पी लिया , वह मुक्ति की भी चाह नहीं करता और किसी वैकुण्ठ की भी इच्छा नहीं करता। जिसे परम आनन्द मिल रहा हो, उसे न मुक्ति चाहिए, न ही बैकुण्ड चाहिए। इस प्रकार मन की मौत का नाम ही साधना है। जिसने मन को मारना सीख लिया , वही साधक है।