रिपोर्ट -डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती हैं। जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनितिक डालो को दान देने के लिए किया जा सकता हैं। चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना दिया हैं अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे असवैधानिक बताया और सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना करते हैं कि राजनितिक पार्टियों को हो रही फंडिंग कि जानकारी मिलना बेहद जरुरी हैं।
31 मार्च तक चुनावी बॉन्ड का डेटा साँझा करने का निर्देश – कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने के आदेश दिए हैं। अदालत ने निर्देश जारी कर रहा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण ३१ मार्च तक चुनावी आयोग को दे। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह १३ अप्रैल ताल अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करे।
क्या हैं इलेक्टोरल बॉन्ड ?- भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागु कर दिया था। भाषा में इसे अगर हम समझे तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनितिक डालो को चंदा देने का एक वित्तय जरिया हैं। यह एक वचन पत्र की तरह हैं। जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओ से खरीद सकता हैं।
– इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई
– पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया
– राजनितिक चंदा गोपनीय रखना असवैधानिक : सुप्रीम कोर्ट
– इलेक्टोरल बॉन्ड सुचना के अधिकार का उल्ल्घन
– वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार
– सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च तक सभी पार्टिया हिसाब दे
– चुनाव आयोग एसबीआई से 2019 से अब तक की जानकारी ले
– ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं : सुप्रीम कोर्ट