रीडर टाइम्स न्यूज़ डेस्क
- नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे।
- उन्होंने अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति महाराष्ट्र सस्था बनाई थी।
- दाभोलकर ने अन्धविश्वास के खिलाफ आंदोलन चलाए थे।
- पुणे में 2013 में दाभोलकर कि हत्या कर दी गई थी।
नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे। उन्होंने समाज में प्रचलित अन्धविश्वास का मुकाबला करने के लिए आंदोलन चलाए थे। पुणे में 2013 में दाभोलकर कि हत्या कर दी गई थी। लेकिन अब नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद कोर्ट का फैसला आ गया महाराष्ट्र के पुणे में गैरकानूनी गतिविधिया ( रोकथाम अधिनियम ( यूपीए ) से जुड़े मामलो कि विशेष अदालत ने अन्धविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता डॉ .नरेंद्र नरेंद्र दाभोलकर कि हत्या के मामले में शुक्रवार के दो लोगो कि सजा सुनाई और मुख्य आरोपी वीरेंद्र सिंह सहित तीन को बरी कर दिया।
पुणे में दाभोलकर की हत्या – पुणे के ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर पर निकले दाभोलकर को मोटरसाइकिल सवार दो हमलावरों ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की दी थी। डॉ जाने – माने हिस्ट्रीशीटर दाभोलकर की हत्या में मुख्य संदिग्ध के रूप में नामित किय गए हैं थे। लेकिन आरोपियों को घटना के दिन की गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में पांच लोगो को आरोपी बनाया गया। दाभोलकर हत्याकांड हिस्ट्रीशीटर के पास से हथियार और कारतूस बरामद हुए थे। जो दाभोलकर के शरीर से बरामद गोलियों से मेल खाते थे। हत्याकांड के आरोपियों को गिरफ्तार कर इसके तुरंत बाद उन्हें जमानत दे दी गई। इस मामले की जांच बाद में सीबीआई के हाथ में चली गई।
दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे – आरोपी
मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों जबकि बचाव पक्ष ने डॉ गवाहों से सवाल – जवाब किए। अभियोजन पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा था। कि आरोपी अन्धविश्वास के खिलाफ दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे।
आरोपियों पर भारतीय धनद संहिता कि धाराओं 120 वी ( साजिश ) 302 (हत्या ) शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं और यूएपीए की धरा 16 ( आतकवादी ) कृत्य के लिए सजा )के तहत मामला दर्ज किया गया था। तावड़े ,अंदुरे और काल्सकर जेल में बाद हैं जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं।
तावड़े ,अंदुरे और काल्सकर जेल में बंद हैं जबकि पुनलकेर और भावे जमानत पर बाहर हैं। दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार साल में तीन अन्य ऐसे ही कार्यकर्ताओ की हत्याए हुई जिनमे कम्युनिस्ट नेता गोविन्द पानसरे ( कोल्हापुर फरवरी 2015 ) कन्नड़ विद्वान एवं लेखक एम .एम कलबुर्गी ( धारखाड़ ,अगस्त 2015 ) और पत्रकार गौरी कलेश ( बेंगलुरु ,सितम्बर 2017 ) की हत्याए शामिल हैं। और ऐसा आदेश था कि इन चारो मामलों के अपराधी एक -दूसरे से जुड़े हुए हैं।