रीडर टाइम्स न्यूज़ डेस्क
मथुरा स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह विवाद में लंबित 8 सिविल वादों की पोषणीयता पर हिंदू पक्ष को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल सिविल वाद पोषणीय है झटके पर झटका खा रही ईदगाह कमेटी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी मुस्लिम पक्ष की ओर से सभी सिविल वादों की पोषणीयता को लेकर दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति मयंक जैन अदालत में प्रतिदिन लंबी सुनवाई की थी। इसके बाद जून में फैसला सुरक्षित लिया था मंदिर पक्ष अधिवक्ताओं ने इसे श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति की दिशा में महत्वपूर्ण बताया है अब मामले में अगले सनी 12 अगस्त से होगी।
बता दे कि हिंदू पक्ष ने जो याचिका दायर की थी उनमें शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को हिंदुओं की बताया था और वहां पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग भी की थी। मुस्लिम पक्ष ने प्लेससिस ऑफ वर्शिप एक्ट वक्फ एक्ट लिमिटेशन एक्ट और स्पेसिफिक पजेशन रिलीज एक्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज किए जाने की दलील पेश की थी। इससे पहले 6 जून को सुनवाई पूरी होने के बाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरअसल हिंदू पक्ष की तरफ से 18 याचिकाएं दाखिल की गई थी। वही मुस्लिम पक्ष ने आर्डर 7 रूल 11 के तहत इन याचिकाओं की पोषणीयता पर सवाल उठाएं और उन्हें खारिज किए जाने की अपील की थी।
- हिंदू पक्षकारों की दलील-
- ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्री कृष्णा विराजमान का गर्भग्रह है।
- शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
- श्री कृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद निर्माण किया गया है।
- बिना स्वामित्व अधिकार के वक्त बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्त संपत्ति घोषित कर दिया हैं।
बता दे की अयोध्या विवाद की दर्ज पर मथुरा मामले में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट सीधे तौर पर मंदिर पक्ष की ओर से दाखिल 18 मुकदमो पर एकसाथ सुनवाई कर रहा है। न्याय मूर्ति मयंक जैन 31 में को ही निर्णय सुरक्षित कर लिया था। लेकिन इसके बाद इंतजामियां कमेटी की ओर से अधिवक्ता महमूद प्राचा ने सुनवाई का मौका देने की मांग की थी इसके बाद दो दिन फिर सुनवाई हुई थी।
मुस्लिम पक्षकारों की दलील –
- मुस्लिम पक्षकालों की दलील हैं कि इस जमीन पर दोनों पक्ष के बीच 1968 में समझौता हुआ है 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं लिहाजा मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
- उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं।
- 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती हैं।