छठ पूजा के तीसरे दिन यानी आज शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा

रीडर टाइम्स न्यूज़ डेस्क
छठ पूजा का समापन उषा अर्घ्य के बाद होता है उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं….

छठ पर्व का तीसरा दिन नहाए खाए और खरना के बाद इस महापौर में आज संध्या काल में डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन पहले भगवान सूर्य और छठी मैया की विधिवत पूजा की जाती है। फिर शाम के समय अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपराएं कहते हैं। कि इस दिन सूर्य देव की उपासना से संतान प्राप्ति संतान की रक्षा और सुख समृद्धि का वरदान मिलता है आई आपको छठ पर्व के तीसरे दिन की पूजन विधि और संध्या अर्घ्य का समय बताते हैं।

चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत का मुख्य व्रत सात नवंबर 2024 गुरुवार यानी आज है 7 नवंबर को डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा। और 8 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इसका समापन होगा मान्यता है कि छठ व्रत संतान की खुशहाली व तरक्की की कामना के साथ रखा जाता है।

छठ में तीसरे दिन कैसे होती है पूजा –
छठ पर्व के तीसरे दिन की पूजा को संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। यह पूजा चैत्र या कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सृष्टि तिथि को की जाती है। इस दिन सुबह से अधिक की तैयारी शुरू हो जाती हैं। पूजा के लिए लोग प्रसाद जैसे ठेकुआ , चावल के लड्डू बनाते हैं। छठ पूजा के लिए बास की बनी एक टोकरी ली जाती है। जिसमें पूजा के प्रसाद फल , फूल आदि अच्छे से सजाकर एक सूप में नारियल ,पांच प्रकार के फल रखे जाते हैं।

सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले लोग अपने पूरे परिवार के साथ नदी के किनारे छठ घाट जाते हैं। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में महिलाएं गीत भी गाती है। इसके बाद व्रती महिलाएं सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती है अर्घ्य देते समय सूर्य देव को दूध और जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद लोग सारा सामान लेकर घर आते हैं । घाट से लौटने के बाद रात्रि में छठ माता के गीत गाते हैं।

जाने कैसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत –
छठ पर्व की एक पौराणिक कथा है कथा के अनुसार राजा प्रियवत और उनकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। इसे लेकर राजा और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की इच्छा के साथ राजा और उसकी पत्नी महर्षि कश्यप के पास पहुंचे महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराया इसके फल स्वरुप प्रेम वध की पत्नी गर्भवती होगी लेकिन 9 महीने बाद रानी ने जिस पुत्र को जन्म दिया। वह मरा हुआ पैदा हुआ यह देखकर प्रियवत और रानी अत्यंत दुखी हुए संतान शोक के कारण राजा ने पुत्र के साथ ही शमशान पर प्राण त्याग ने व आत्महत्या करने का मन लगा बना लिया। जैसे ही राजा स्वंय ने प्राण त्यागने की कोशिश की वहां एक देवी प्रकट हुई जो इस मानस पुत्री देवसेना थी। देवसेना ने राजा से कहा कि… सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे यंत्र से उत्पन्न हुई है उन्होंने कहा मैं षष्ठी देवी यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं प्रसन्न होकर तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। राजा ने देवी सृष्टि की आज्ञा का पालन किया और कार्तिक शुक्ल पक्ष की शक्ति तिथि के दिन देवी सृष्टि के लिए पूरे विधि विधान से व्रत रखकर पूजा की देवी सृष्टि के आशीर्वाद से राजा को पुत्र के प्राप्ति हुई कहा जाता है। कि राजा ने कार्तिक शुक्ल की सृष्टि तिथि को यह व्रत किया था और इसके बाद से ही छठ पूजा आरंभ हुई।

सूर्य अर्घ्य देने का समय –
छठ पूजा की तीसरे दिन यानी आज शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार 7 नवंबर को सूर्योदय प्रात 6:42 बजे होगा। सूर्य जब की सूर्यास्त शाम 5:48 बजे होगा। इस दिन नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

क्यों दिया जाता है डूबते हुए सूरज को अर्घ्य –
पुरानी मानताओ के अनुसार सांयकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युष को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती ज्योतिषों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देखकर कई मुसीबत से छुटकारा पाया जाता है। इसके अलावा सेहत से जुड़ी कई समस्या दूर हो जाती है।