रीडर टाइम्स न्यूज़ डेस्क
11 साल की उम्र में पिता से तबला सीखने वाले जाकिर हुसैन ने घर के बर्तनों से धुन बनानी शुरू की थी.अपनी उंगलियों की थाप सबको मत्र मुग्ध करने वाले विश्वविख्यातम तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन …
देश के मशहूर फनकार तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन साहब नहीं रहे। पद्मा श्र। पद्म भूषण और पद्म विभूषण जाकिर हुसैन ने अमेरिका के सन फ्रांसिस्को में सोमवार सुबह अंतिम सांस ली। 73 वर्षीय उस्ताद जाकिर को रविवार रात रक्तचाप की समस्या के चलते अमेरिका के अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।
90 की दशक से जेहन में बसे –
90 की पैदाइश वाले लोगों के जेहन में दूरदर्शन की जो यादें अब तक जिंदा है उनमें दो बातें कहां से पहले तो वह अमर गीत (मिले सुर मेरा तुम्हारा) और दूसरा कई सारे यादगार विज्ञापन उन दोनों एक चाय का विज्ञापन बहुत मशहूर था। यह अपना नदी का किनारा ताजमहल का बैकग्राउंड और मोहब्बत के निशानी के सामने बैठा एक नौजवान जिनकी उंगलियां तो तबला पर टिकती ही थी। बाल भी उसी गति से हवा से बातें करते हुए क्या ही गजब लहराते थे। यह विज्ञापन भले ही चाय कर रहा हो लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन साहब इसके जरिए हर घर में मशहूर हो गए। हालांकि वैश्विक मंच पर उनकी एक अलग आभा तो पहले ही बन चुकी थी लेकिन सरल सहज मिडिल क्लास वाले आम परिवारों के बीच यह एक कलाकार के स्वीकारता थी। बाल बढ़ाए हुए बच्चे बर्तन भांडे बजाते हुए खूब झूमते हुए उस्ताद साहब की नकल करते थे।
डेढ़ की उम्र में पिता ने कान में सुनाई ताल –
उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिली उनके पिता पहले से ही देश के मशहूर तबला वादकों में से एक थे। विदेश में बड़े – बड़े कंसर्ट किया करते थे। जब बेटा हुआ तो डेढ़ दिन के जाकिर के कानों में पिता ने ताल गा दी। बस फिर क्या था। संगीत का परिवार मिला पिता का आशीर्वाद मिला और वहीं से जाकिर के उस्ताद बनने का आधार तय हो गया। उस समय डेढ़ दिन के जाकिर को दिया आशीर्वाद उनके बेटे को तबले की दुनिया का सबसे बड़ा उस्ताद बना देगा। इसका अंदाजा तो खुद उस्ताद अल्ला रखा को भी नहीं होगा।
पहली बार स्टेज पर 20 मिनट तबला बजाया – सौ रुपए मिले
अपनी पहली परफॉर्मेंस का किस्सा शेर की जाकिर हुसैन ने एक इंटरव्यू में सुनाया था। उन्होंने कहा था मैं बचपन में पिता जी के साथ मशहूर सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान साहब के कार्यक्रम में गया था। हम वह कार्यक्रम देखने गए थे पर पिताजी ने मुझे स्टेज पर बैठा दिया तब मैं मात्र 12 साल का था और मैं उस्ताद के साथ 20 मिनट तबला बजाया तब उन्होंने मुझे ₹100 दिए थे उन्हें मैंने तब तक संभाल के रख या मेरे लिए करोड़ों रुपए के बराबर था खास बात यह थी कि 7 साल की उम्र में मेरी पहली संगत भी उस्ताद अली अकबर खान साहब के साथ हुई थी।
पसंद नहीं करते थे कोई उस्ताद बोले –
जाकिर हुसैन साहब को कभी पसंद नहीं आता था कि उन्हें कोई उस्ताद बोले वह अक्सर कहते थे कि मैं उस्ताद नहीं हूं सिर्फ जाकिर हूं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कुछ ऑर्गेनाइजेशन अपने शोज की टिकट बेचने के लिए मेरे नाम के आगे उस्ताद लगना शुरू कर दिया। मुझे खुद को उस्ताद बुलाना पसंद नहीं जाकिर ने यहां भी बताया कि वह हमेशा स्टेज पर पहुंचने के बाद तय करते कि उन्हें क्या बजाना है। वह कुछ भी प्लान नहीं करते सब कुछ मूड और पब्लिक के रिस्पांस पर करना पड़ता है।