रीडर टाइम्स डेस्क
– आयु सीमा का अतिक्रमण करने पर लगता है, व्रात्य दोष।
– निश्चित आयु में हो संस्कार, विचारकों को इस पर करना चाहिए विचार ।

हरदोई 30 अप्रैल / यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ही बालक यज्ञ तथा वेदों का अध्ययन कर सकता है। यह संस्कार आठ से सोलह वर्ष की आयु में हो जाना चाहिए। आयु का अतिक्रमण करने पर व्रात्य दोष लगता है। शहीद उद्यान स्थित कायाकल्पकेन्द्रम् में बुधवार को अक्षय तृतीया पर बावन के पंद्रह वर्षीय सोहन त्रिपाठी का उपनयन संस्कार किया गया। प्रताप नारायण अवस्थी ने कायाकल्प स्थित यज्ञशाला में वेद मंत्रों से उपनयन संस्कार कराया। उन्होंने कहा कि यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान बालक को जनेऊ धारण कराया जाता है। यह जनेऊ तीन ऋणों (ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण) का प्रतीक है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद ही व्यक्ति को यज्ञ करने और स्वाध्याय करने का अधिकार मिलता है।कायाकल्पकेन्द्रम् के संस्थापक व सीनियर नेचरोपैथ डॉ. राजेश मिश्र ने कहा कि वे अपनी जन्मभूमि खेरिया में कई वर्षों से सामूहिक उपनयन संस्कार करा रहे हैं लेकिन इस बार गायत्री महापुरश्चरण साधना चल रही है; इसलिए यहां उपनयन संस्कार का कार्यक्रम रखा गया। उन्होंने कहा आठ से सोलहवें वर्ष में उपनयन संस्कार हो जाना चाहिए लेकिन आयु का अतिक्रमण किया जा रहा है। लोग संस्कार समय सीमा में नहीं करते, विचारकों को इस पर विचार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पहले वे बड़ी उम्र (बीस वर्ष से अधिक) के युवकों का भी यज्ञोपवीत संस्कार करवाते थे लेकिन अब शास्त्रीय विधि-विधान से आठ से पंद्रह वर्ष की आयु के बालकों का उपनयन संस्कार करायेंगे। आगे कहा कि समय सीमा निकल जाने के बाद व्रात्य दोष लगता है। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता ने ग्यारहवें वर्ष में उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया था जिसका उन्हें लाभ मिल रहा है।उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में अधिकांश ब्राह्मण ऐसे हैं जो न तो संध्या करते हैं और न हवन और अपने बालक का निश्चित समय पर यज्ञोपवीत संस्कार नहीं करते। ऐसे लोगों को देखने से पाप लगता है। कहा संध्या-हवन न करने वाले ब्राह्मण के घर में पानी तक नहीं पीना चाहिए और ऐसे ब्राह्मण का मुंह देखने से भी पाप लगता है। कार्यक्रम में डॉ अभिषेक पाण्डेय, डॉ सरल कुमार, हरिवंश सिंह, मनोज मिश्र, सत्यवीर, शिवकुमार, राम नारायण चौरसिया, दीपाली, अनामिका व अन्य लोग उपस्थित रहे।