श्रवन में कुंडल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
कनकमय मोर मुकट बिलसे, देवता दरसन को तरसे।
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्री गंगै
चमकती उज्जवल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू।
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