कई बार Airplane या रॉकेट के गुजरने के बाद वो आसमान की बनी सफेद लकीर को हम बड़े आश्चर्य से देखते थे. कोई उसे रॉकेट का धुआं मानता था, तो कोई बर्फ की लकीर, पर शायद ही कोई जानता हो कि वो असलियत में होती क्या है ? दरअसल नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘आसमान में बनने वाली इस सफेद लकीर को कंट्रेल्स कहते हैं. कंट्रेल्स भी बादल ही होते हैं, पर वो आम बादलों की तरह नहीं बनते. ये हवाई जहाज या रॉकेट से बनते हैं और काफी ऊंचाई पर ही बनते हैं.’ ज़मीन से करीब 8 किलोमीटर ऊपर और -40 डिग्री सेल्सियस में इस तरह के बादल बनते हैं. हवाई जहाज़ या रॉकेट के एग्जॉस्ट से Aerosols निकलते हैं. जब पानी की भाप इन Aerosols से साथ जम जाती है, तो कंट्रेल्स बनते हैं . आसमान में बनने वाली इस सफ़ेद लकीर को कंट्रेल्स कहते हैं.
कंट्रेल्स सबसे पहले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1920 में देखे गए थे. ये सबकी नज़रों में दूर से ही आ जाते थे. इस कंट्रेल्स की वजह से न ही लड़ाकू पायलट पकड़े जाते थे, बल्कि कई खबरें आई थीं कि धुएं के कारण कई विमान आपस में टकरा गए क्योंकि उन्हें कुछ दिख नहीं रहा था.
आम तौर पर कंट्रेल्स तीन तरह के होते हैं.
1. Short Lived Contrails
ये कंट्रेल्स कुछ ही समय में गायब हो जाते हैं, जैसे ही विमान जाता है ये भी लुप्त हो जाते हैं.
2. Persistent Contrails (Non-spreading)
ये कंट्रेल्स लम्बी लाइन होती है, जो आसमान में विमान जाने के बाद तक दिखती हैं. इनके बनने का कारण हवा में नमी होती है.
3. Persistent Spreading Contrails
ये कंट्रेल्स हवा में फ़ैलने लगती है और ज़्यादा जगह घेरती है. ये भी नमी के कारण आसमान में काफ़ी देर तक दिखती है. कंट्रेल्स तेज़ हवा की वजह से अपनी जगह से खिसक भी जाती है, ज़रूरी नहीं है कि वो वहीं दिखे जहां से जहाज़ गुज़रा था.