मोदी सरकार में चरमराते बैंक, जाने अगर बैंक डूबे तो कितना रुपया रहेगा आपका सुरक्षित

 

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रिपोर्ट:- अंशिका कटियार, रीडर टाइम्स लखनऊ 

नोट बंदी और GST के बाद से लगातार बैंक का कर्ज न उतर पाने वालो की सूचि लम्बी है| अभी पंजाब नेशनल बैंक के मुताबिक 56 सौ करोड़ रुपये चालू वित्त वर्ष के पहले 2 महीनो में स्ट्रेस असेट्स से रिकवर किये हैं| बैंक का कहना है की विलफुल डिफाल्टर की सूची में वो लोग भी शामिल है जो कर्ज उतारने में सक्षम है| और जानबूज कर कर्ज वापस नहीं करना चाहते है|

खास बात यह है कि बढ़ रहे NPA की वजह से बैंको पर सरकार की तरफ से हो रही लागत कटौती का दबाव बना रही है| जिसके कारण बैंक कर्मचारियों कि संख्या कम कर रहे है | किसी-किसी बैंक शाखा में तो चार ही कर्मचारी ही कार्यरत है| सभी सरकारी बैंको कि स्थिति लगभग एक ही जैसी है| अब इसको सरकार कि गलत नीतिया या फिर बैंको में बढ़ता भ्र्ष्टाचार किसको जिम्मेदार बताना ठीक होगा| या फिर दोनों को, हम आपको बताना चाहते है कि कुछ साल पहले तक यही बैंक सरकार और देश के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी हुआ करती थी| और सरकारी आय का बहुत बड़ा श्रोत हुआ करते थे|

 

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आज के समय में आम आदमी बैंक को दुनिया का सबसे सुरक्षित साधन मानते हैं| उनको लगता है कि उनकी बैंक में जमा रकम पूरी तरह से सुरक्षित है और लगे भी क्यों न उनका विश्वाश करे आखिर उनके ऊपर सरकारी होने का ठप्पा जो लगा है| लेकिन यह बात सच्चाई से बिलकुल परे है| बैंक के डूबने कि स्थिति में आप अपनी गाड़ी कमाई अपनी मर्जी से निकाल तक नहीं सकते हैं| यहाँ तक कि DICGC एक्ट के मुताबिक आपको अधिकतम 1 लाख रुपया सरकार अथवा बैंक कि तरफ से ही दिया जायेगा| हलाकि यह बात खाताधारक को पता ही नहीं होती है| और यह बैंक पर आंख बंद करके भरोसा करते रहते है |

लागत कटौती के चलते बैंक नई भर्ती निकलने में हिचकिचा रहे हैं और यहां तक कि मौजूदा कर्मचारियों कि सैलरी में नाम मात्रा का बढ़ावा किया गया है| हलाकि कर्मियों द्वारा की गयी हड़ताल का कोई खास नतीजा नहीं निकला| आज के समय में बैंक कर्मचारी को सामान्य तौर पर 10 से 14 घंटे तक कम करना पड़ रहा है| यहां तक की सरकारी योजनाओ को लागू करने की ज़िम्मेदारी भी बैंक पर आ चुकी है|

यह भी कहना गलत नहीं होगा कि राजनितिक पार्टियॉ भी बिल्कुल डिफाल्टर को संरक्षण देती हैं| हमारे देश में सिस्टम हमेशा जानबूज कर कर्ज न वापिस करने वालो के खिलाफ कार्यवाही करने में असफल साबित हो रहे हैं| आजकल कर्ज लेकर विदेश भागना तो सामान्य सी बात हो गयी है| अभी कुछ दिन पहले ही एक किसान द्वारा 65 हजार रुपये का कर्ज कि किस्तों में देरी होने के कारण वित्तीय संस्थान के लोगो द्वारा रिकवरी के दौरान उसकी हत्या कर दी गयी| यदि 65 हजार रुपये कि रिकवरी इतनी शख्ती से कि जा रही है कि सम्बंधित आदमी की मृत्यु हो सकती है तो फिर बैंक 9 लाख करोड़ के करीब पहुंच गये NPA पर इसकी आधी शख्ती की गयी होती तो बैंकिंग सेक्टर की खस्ता हालत न होते या फिर सिर्फ गरीब आदमी पर ही कानून का डंडा चलता है|