सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगी राय, लिव-इन में रहने के बाद शादी से मुकरने पर महिला को दिया जाए गुजारा भत्ता?

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लिव-इन संबंधों में रह रही महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने और शादी की बात कहकर यौन संबंध बनाने के बाद धोखे देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है।लिव-इन संबंधों में रह रही महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने और शादी की बात कहकर यौन संबंध बनाने के बाद धोखे देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। क्या ऐसे संबंधों को अपने आप ही शादी की तरह देखा जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ऐसे सवालों की पड़ताल करने के लिए तैयार हो गया है। अदालत ने इस पर केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी है।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या लंबे समय तक चले करीबी रिश्तों को ‘शादी जैसा’ माना जा सकता है? रिश्ते को ‘शादी जैसा’ मानने का पैमाना क्या होना चाहिए? कितने वक्त तक चले रिश्ते को ऐसा दर्जा दिया जाए? कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी को इस मामले में मदद के लिए एमिकस क्यूरी के तौर पर नियुक्त किया है| कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को इस मसले पर अदालत की मदद के लिए किसी लॉ ऑफिसर को नियुक्त करने को कहा है|

क्या है पूरा मामला

गलूरु के आलोक कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर खुद पर लगे दुष्कर्म समेत अन्य अपराधिक मामलों को निरस्त करने की मांग की है| कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगे दुष्कर्म सहित अन्य अपराधों के तहत दर्ज मुकदमे को निरस्त करने की अपील ठुकरा दी गई थी| महिला की मां ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी| याचिकाकर्ता का कहना है कि उस पर यह आरोप नहीं बनता, क्योंकि महिला की मर्जी से दोनों साथ रहते थे और आपसी सहमति से उनके बीच संबंध स्थापित हुए थे| अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले पर रोक लगा दी है|

लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के तहत आने, गुजारा भत्ता पाने और संपत्ति में हिस्सा पाने के योग्य करार चुका है| व्यस्क जोड़े को शादी के बिना भी साथ रहने का अधिकार है| ये बात सुप्रीम कोर्ट ने केरल की रहने वाली 20 वर्षीय महिला के मुकदमे के संबंध में कही थी| महिला की शादी शून्य घोषित कर दी गई थी| लेकिन उससे ये कहा गया कि उसे अधिकार है कि वह जिसके साथ रहना चाहे, रह सकती है| कोर्ट ने ये भी कहा था कि लिव-इन रिश्तों को अब कोर्ट भी मान्यता देता है| इसे महिलाओं की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत कानून में जगह दी गई है|