प्रकृति से सिर्फ हम इंसान ही नहीं पक्षी भी प्रेम करते है। लेकिन शहरीकरण के चलते जिस तरह पेड़ो को अंधाधुंध काटा जा रहा है, अनेको पशु -पक्षी विलुप्त हो गए है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है । कुछ पक्षियों के घोसले बनाने के तरीके इतने अनोखे होते है कि बस देखते ही रह जायेंगे। बया एक ऐसी ही चिड़िया है। प्रकृति प्रेमियों का मानना है कि बया जितना सुंदर घोंसला बनाती है, उतना सुंदर कोई दूसरी चिड़िया अपना घर नहीं बना पाती। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि बया एक ऐसी चिड़िया है, जिसके घोंसलों में रात के समय रोशनी की भी व्यवस्था होती है।
बया अपने चोंच में तालाब के किनारे से गीली मिट्टी लेकर आती है और उसे घोंसलों में चिपकाने के बाद तुरंत कहीं से जुगनू को पकड़कर ले आती है और गीली मिट्टी के सूखने से पहले ही जुगनू को उसमें चिपका देती है। बस, हो गया रोशनी का बेहतरीन इंतजाम। जुगनू घोंसले में भुक-भुक रोशनी देता रहता है। मानना पड़ेगा कि बया तेज दिमाग चिड़िया होती है और अंधेरा उसे पसंद नहीं है।
सभी चिड़िया ज्यादातर दो डालों के बीच में अपना घोंसला बनाती है, लेकिन बया एक डाली पर इस तरीके से अपना घोंसला बनाती है कि वह हर वक्त झूलता रहे। इससे उसे दो लाभ हैं। एक तो यह कि ऐसे घोंसलों में दूसरे पक्षियों के घुसने का खतरा कम रहता है और दूसरा, बया व उसका परिवार झूला झूलने का भी आनंद उठा लेती है।
बया एक ऐसे नस्ल की चिड़िया है, जिसके नर द्वारा कर्म किए जाने की परंपरा कायम है। जब घोंसला आधे से अधिक बन जाता है, तब नर बया विशेष प्रकार की आवाज निकालकर मादाओ को आकर्षित करता है और इनकी मादाएं भी काफी सूझबूझ से अपने जीवन साथी को चुनने का निर्णय लेती है। मादा बया कई अधबने घोसलों में जाकर और उसमें बैठकर पहले चेक करती है। जब वह सुनिश्चित कर लेती है कि कौन-सा घोंसला उसके और उसके आने वाले परिवार के लिए सुरक्षित होगा, तभी वह बया का निमंत्रण स्वीकार करती है।
बया के घोंसले सुंदरता के साथ-साथ काफी मजबूत होते हैं, क्योंकि बया किसी जमीन पर पड़े हुए खर पतवार से अपना घोसला नहीं बनाती है, बल्कि मजबूत किस्म के ताजे खर पतवार को चोंच से काटकर लाती है और अपनी विशेष तकनीक से घोंसले की बिनाई करती है। अक्सर देखने में आया है कि ये अपने परिवार की जनसंख्या के अनुसार, इसे एक मंजिला से लेकर तीन मंजिला तक बना डालती है।
ये देखने में सुंदर होने के साथ-साथ काफी मजबूत भी होता है। खास बात यह कि अंधाधुंध पेड़ों की कटान और दूसरी मानवीय गतिविधियों के कारण जहां बया अन्य जगहों पर अब नदारद हो रही है, वहीं कतर्नियाघाट आज भी इसके घोंसलों से गुलजार है।